4 कारण, जिनकी वजह से भगवान विष्णु को लेना पड़ा श्रीकृष्ण अवतार?

Janmashtami Story: भगवान विष्णु ने ही द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था, ये बात तो हम सभी जानते हैं लेकिन उन्हें ऐसा क्यों करना पड़ेगा। इसके पीछे एक नहीं कईं कारण हैं।

 

Manish Meharele | Published : Aug 24, 2024 5:31 AM IST / Updated: Aug 26 2024, 08:16 AM IST
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जन्माष्टमी 26 अगस्त को

Janmashtami Ki Katha: धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। बहुत से लोग यही जानते हैं कि भगवान ने ये रूप कंस का वध करने के लिए लिया था, लेकिन ये पूरा सच नहीं है। भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेने के पीछे और भी कईं कारण थे। जन्माष्टमी (26 अगस्त, सोमवार) के मौके पर जानिए क्यों लिया भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार…

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धरती पर बढ़ गए थे अत्याचारी क्षत्रिय

महाभारत के अनुसार, द्वापर युग में क्षत्रियों का आतंक काफी बढ़ गया था, जिसमें कंस, जरासंध आदि प्रमुख थे। वे निर्दोष लोगों के साथ-साथ साधु-संतों को भी परेशान करते थे। तब पृथ्वी माता ने भगवान विष्णु से जाकर इस अत्याचार को रोकने की प्रार्थना की। पृथ्वी की पुकार सुनकर ही भगवान विष्णु ने अन्य देवताओं को भी धरती पर अवतार लेने को कहा और स्वयं भी श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए।

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अपने वरदान को सिद्ध करने के लिए

भगवान विष्णु ने अलग-अलग अवतारों के समय अपने भक्तों को कईं वरदान दिए थे। जैसे पूर्व जन्म में वसुदेव महर्षि कश्यप और देवकी उनी पत्नी अदिति थी। उन्होंने भगवान विष्णु को पुत्र रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। तब भगवान ने उनकी ये प्रार्थना स्वीकार की और कृष्ण रूप में उनके गर्भ से अवतार लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने इस रूप में अनेक वरदानों को सिद्ध किया।

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अधर्म का नाश करने के लिए

द्वापर युग में अनेक राक्षस मनुष्य रूप में अवतरित हुए थे। जैसे दुर्योधन कलयुग का अंशावतार था, वैसे को नरकासुर और कालयवन भी राक्षस स्वरूप में भगवान के भक्तों को परेशान करते थे, जिसके कारण अधर्म काफी बढ़ गया था। श्रीकृष्ण के रूप में भगवान ने इन अधर्मियों का नाश किया और धर्म की स्थापना की।

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जीवन दर्शन देने के लिए

भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में मोहग्रस्त अर्जुन को सही रास्ता दिखाने के लिए गीता का उपदेश दिया। वो उपदेश सिर्फ अर्जुन के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए था। गीता में जीवन के सभी रहस्यों और परेशानियों का हल छिपा हुआ है। श्रीकृष्ण ने बताया कि कर्म ही प्रधान है और ये कर्म हमेशा धर्मयुक्त होना चाहिए।


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