Jitiya 2025 Date: कब करें जीवित्पुत्रिका व्रत? जानें पूजा विधि, मंत्र, मुहूर्त सहित पूरी डिटेल

Published : Sep 13, 2025, 09:33 AM IST
Jitiya 2025 Date

सार

Jitiya 2025 Date: श्राद्ध पक्ष के दौरान अष्टमी तिथि पर जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। आमतौर पर ये व्रत झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में किया जाता है। इसका धार्मिक महत्व भी है।

Jitiya Vrat 2025 Details: हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में 3 दिनों तक जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इस व्रत का समापन अष्टमी तिथि पर होता है और मुख्य पूजा भी इसी दिन की जाती है। इस बार ये जीवित्पुत्रिका व्रत की मुख्य पूजा 14 सितंबर, रविवार को की जाएगी। महिलाएं ये व्रत अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए करती हैं। वैसे तो ये व्रत पूरे देश में प्रचलित हैं लेकिन इसकी सबसे ज्यादा मान्यता उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में है। इस व्रत के और भी कईं नाम है जैस जिमूतवाहन, जिऊतिया और जितिया आदि। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, कथा व अन्य खास बातें…

ये भी पढ़ें-
Jitiya Vrat: बच्चों की सेहत, सुरक्षा और सफलता के लिए आजमाएं ये टोटके, असर दिखेगा तुरंत!

जितिया व्रत 2025 शुभ मुहूर्त

सुबह 07:48 से 09:19 तक
सुबह 09:19 से 10:51 तक
सुबह 11:58 से दोपहर 12:46 तक (अभिजीत मुहूर्त)
दोपहर 01:53 से 03:25 तक

ये भी पढ़ें-
Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत से पहले क्यों जरूरी है माछ-भात खाना? ये हैं 3 बड़े कारण

जितिया व्रत की व्रत-पूजा विधि

- 14 सितंबर, रविवार की सुबह व्रती महिलाएं (व्रत करने वाली) जल्दी उठकर स्नान आदि करें और व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। कुछ भी खाएं नहीं। बुरे विचार मन में न लगाएं। किसी से विवाद न करें।
- शाम को गाय के गोबर से पूजन स्थल को लीपकर शुद्ध कर लें। अब यहां मिट्टी से छोटे तालाब की आकृति बना लें।
- इसके किनारे पाकड़ वृक्ष की टहनी खड़ी कर दें। कुशा घास से जीमूतवाहन का पुतला बनाएं और इसकी पूजा करें।
- मिट्टी या गोबर से मादा चील और सियारिन की मूर्ति भी बनाएं। इनकी भी सिंदूर लगाकर विधि-विधान से पूजा करें।
- पूजा के बाद इस व्रत की कथा भी जरूर सुनें। बिना कथा सुनें इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता।

जितिया व्रत की कथा

किसी समय जिमूतवाहन नाम के एक गंधर्वों के राजकुमार थे। एक दिन जब वे वन में घूम रहे थे तो उन्हें वृद्ध महिला रोती दिखाई दी। कारण पूछने पर महिला ने बताया कि ‘मैं नागजाति की स्त्री हूं। हमारी जाति में परंपरा के अनुसार रोज एक बलि गरुड़ को दी जाती है। आज मेरे पुत्र की बारी है।’
महिला की बात सुनकर जीमूतवाहन ने कहा ‘आज तुम्हारे पुत्र के स्थान पर मैं गरुड़देव का आहार बनूंगा। ऐसा कहकर जीमूतवाहन स्वयं गरुड़देव का आहार बनने को खड़े हो गए। जब गरुड़देव वहां आए और दूसरे वंश के युवक को देखा तो इसका कारण पूछा। जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी बात सच-सच बता दी।
जीमूतवाहन की बहादुरी देख गरुड़देव बहुत खुश हुए और उन्होंने नागवंश की बलि ना लेने का वचन दिया। इस तरह जिमूतवाहन ने नाग जाति को खत्म होने से बचा लिया। तभी से संतान की सुरक्षा के लिए हर साल जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

PREV
Read more Articles on

Recommended Stories

Akhurath Chaturthi Vrat Katha: रावण ने क्यों किया अखुरथ चतुर्थी का व्रत? पढ़ें ये रोचक कथा
Akhurath Chaturthi 2025: अखुरथ संकष्टी चतुर्थी कब, 7 या 8 दिसंबर? जानें मुहूर्त-मंत्र सहित पूरी विधि