Khar Maas Ki Katha: क्या है ‘खर’ का अर्थ? सूर्यदेव के रथ से जुड़ी है खरमास की रोचक कथा

Published : Dec 15, 2025, 02:21 PM IST
Khar Maas Ki Katha

सार

Khar Maas Ki Katha: धर्म ग्रंथों के अनुसार हर साल 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक खर मास आता है। इससे जुड़ी एक रोचक कथा भी है जिसके बारे में कम ही लोगों को पता है। आगे जानिए खर मास की रोचक कथा।

Khar Maas Katha In Hindi: अनेक धर्म ग्रंथों में खर मास के बारे में बताया गया है, इसका ज्योतिषिय महत्व भी है। ज्योतिषियों की मानें तो जब भी सूर्य गुरु ग्रह की राशि जैसे धनु और मीन में प्रवेश करता है तो इसे खर मास कहते हैं। ये स्थिति साल में दो बार बनती है दिसंबर और मार्च में। इस बार भी खर मास 16 दिसंबर 2025 से शुरू होगा जो 13 जनवरी 2026 तक रहेगा। खर मास से जुड़ी एक रोचक कथा भी है। आगे जानिए खर मास की ये रोचक कथा…

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ये है खर मास की कथा (Khar Maas Ki Katha)

खर मास की कथा मार्कंडेय पुराण में मिलती है। उसके अनुसार, सूर्यदेव के रथ में 7 घोड़ें हैं जो निरंतर चलते रहते हैं। एक बार ऐसा हुआ कि सूर्यदेव के रथ के घोड़े चलते-चलते बहुत तक गए। सूर्यदेव से उनकी ये स्थिति देखी नहीं गई और वे तालाब में अपने घोड़ों को पानी पिलाने लगे।

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लेकिन सूर्यदेव किसी भी स्थिति में रुक नहीं सकते थे लेकिन वे थके हुए घोड़ों को अपने रथ में जोत भी नहीं सकते थे। तभी उन्हें तालाब के किनारे 2 गधे दिखाई दिए। सूर्यदेव ने उन्हें ही अपने रथ में जोता और यात्रा करने लगे। इस तरह एक महीने तक यात्रा करने के बाद सूर्यदेव पुन: उस स्थान पर आए जहां उन्होंने अपने घोड़ों को पानी पीने के लिए छोड़ा था।
तब तक सूर्यदेव के घोड़ों की थकान दूर हो चुकी थी। सूर्यदेव ने गधों को अपने रथ से निकाला और पुन: अपने घोड़ों को जोत लिया और आगे की यात्रा करने लगे। ये पूरी घटना तब हुई जब सूर्य धनु राशि में थे। गधों का एक नाम खर भी है। इसलिए ये महीना खर मास कहलाया।
तब से जब भी सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तो इसे खर मास कहा जाता है क्योंकि खर का एक पर्यायवाची गधा है। खास बात ये है कि इस महीने में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि भी नहीं किया जाता है।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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