Chhath Puja Ki Katha: मृत बालक कैसे हो गया जीवित? जानें छठ पूजा की रोचक कथा

Published : Oct 24, 2025, 01:45 PM IST

Chhath Puja Ki Katha: छठ पूजा उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है। ये त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्यदेव और छठ मैया की पूजा विशेष रूप से की जाती है। ये पर्व क्यों मनाते हैं, इससे जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं।

PREV
14
कब से शुरू होगी छठ पूूजा?

Chhath Puja Ki Katha In Hindi: उत्तर भारत के सबसे बड़े पर्व छठ पूजा को सूर्य षष्ठी और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस बार ये पर्व 25 से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान अनेक परंपराओं का पालन किया जाता है। वैसे तो छठ पूजा पूरे देश में की जाती है लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड आदि प्रदेशों में इसकी विशेष मान्यता है। छठ पूजा क्यों की जाती है और इसकी परंपरा कैसे शुरू हुई, इससे जुड़ी अनेक कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती है। आगे जानिए इस पर्व से जुड़ी रोचक कथाएं…


ये भी पढ़ें-
Chhath Puja 2025: बिना ‘ठेकुआ’ अधूरा है छठ पर्व, इसका भोग क्यों जरूरी?

24
कैसे हुई छठ पूजा की शुरूआत?

देवी पुराण के अनुसार, सतयुग में प्रियवद नाम के एक पराक्रमी राजा थे लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। तब राजा प्रियवद ने संतान प्राप्ति के लिए विशेष यज्ञ किया, जिससे प्रभाव से उन्हें एक पुत्र हुआ। लेकिन जन्म लेने के कुछ देर बाद ही वह मृत हो गया। राजा प्रियवद जब उसका अंतिम संस्कार करने वाले थे तभी वहां षष्ठी देवी प्रकट हुई और उन्होंने उस बालक को अपनी गोद में लेकर पुन: जीवित कर दिया। उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि थी। राजा प्रियवद ने उस दिन षष्ठी देवी यानी छठी मैया की पूजा की और सभी को ऐसा करने को कहा। तभी से छठ पूजा की परंपरा चली आ रही है।


ये भी पढे़ें-
Chhath Puja 2025: नहाय-खाय के दिन भूलकर भी न करें ये गलती, जानिए क्या खाएं क्या न खाएं?

34
त्रेतायुग में भी होती थी छठ पूजा

त्रेतायुग में भी छठ पूजा की जाती थी, इसके वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है। उसके अनुसार स्वयं भगवान श्रीराम और देवी सीता ने भी छठ पूजा की थी। रावण का वध करने के बाद जब भगवान श्रीराम देवी सीता को लेकर अयोध्या आए और राज-पाठ संभाला तो उनके साथ-साथ पूरे अयोध्यावासियों ने षष्ठी देवी और सूर्यदेव क विधि-विधान से पूजा की।

44
द्वापर युग में पांडवों ने की छठ पूजा

मान्यता है कि, द्वापर युग में भी छठ पूजा का प्रचलन था। स्वयं पांडवों ने भी सूर्यदेव और षष्ठी देव की पूजा की थी। वनवास के दौरान पांडव जिस बर्तन (अक्षय पात्र) से भोजन प्राप्त करते थे, वह भी सूर्यदेव ने ही उन्हें दिया था। हस्तिनापुर का राजा बनने के बाद युधिष्ठिर आदि सभी भाइयों ने सूर्यदेव की पूजा की थी। इसे छठ पूजा के रूप में ही देखा जाता है।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

Read more Photos on

Recommended Stories