18 फरवरी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और माथे पर भस्म का त्रिपुंड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला पहनें। इसके बाद घर में किसी साफ स्थान पर शिवलिंग की स्थापना करें।
- शिवलिंग के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं और इसके बाद जल से अभिषेक करें। बाद में फूल, रोली, बिल्व पत्र, भांग, धतूरा, अबीर, गुलाल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें और नीचे लिखा श्लोक बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
- इस तरह सामान्य विधि से पूजा करने के बाद मौसमी फलों और मिठाई का भोग लगाएं। अंत में आरती कर पूजा संपन्न करें। अपनी इच्छा अनुसार व्रत करें। दिन भर सात्विकता का पालन करें।
- शिवपुराण में महाशिवरात्रि पर रात्रि के चारों प्रहर में शिव पूजा का विधान है। इसके लिए शाम को एक बार पुन: स्नान करके घर के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये
- रात में भी पहले दीपक जलाएं और पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।
- अगले दिन (19 फरवरी, रविवार) सुबह पुन: स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें।
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