
Mokshada Ekadashi 2025 Details: धर्म ग्रंथों में जो 24 एकादशियां बताई गई हैं, उनमें से मोक्षदा एकादशी भी एक है। ये एकादशी अगहन मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इस एकादशी का महत्व कहीं अधिक माना गया है क्योंकि इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। गीता में ही मोक्ष का सार है, इसलिए इस एकादशी का ये नाम रखा गया है। इस बार मोक्षदा एकादशी का व्रत 1 दिसंबर, सोमवार को किया जाएगा। आगे जानिए मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि, मंत्र और शुभ मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…
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सुबह 06:55 से 08:15 तक
सुबह 09:35 से 10:55 तक
दोपहर 11:54 से 12:37 तक (अभिजीत मुहूर्त)
दोपहर 01:35 से 02:56 तक
शाम 04:16 से 05:36 तक
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- मोक्षदा एकादशी के एक दिन पहले यानी 30 नवंबर, रविवार को सात्विक भोजन करें जिसमें लहसुन-प्याज नहीं होना चाहिए। रात में जमीन पर सोएं और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
- 1 दिसंबर, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प करें। दिन पर कुछ खाएं नहीं, यदि ऐसा संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं।
- ऊपर बताए गए किसी भी शुभ मुहूर्त से पहले पूजा की पूरी तैयारी कर लें। घर में किसी स्थान को साफ कर वहां गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें। वहां लकड़ी का पटिया रख दें।
- शुभ मुहूर्त शुरू होने पर इस पटिए पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित करें। भगवान के चित्र पर तिलक लगाएं और फूलों की माला पहनाएं। शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
- भगवान को अबीर, गुलाल, रोली, चंदन आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाएं। पूजा करते समय कृं कृष्णाय नमः मंत्र का जाप करते रहें। भगवान को माखन मिश्री व फलों का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद आरती करें। रात में भजन-कीर्तन करें या मंत्रों का जाप करते रहें। अगले दिन 2 दिसंबर, मंगलवार को सुबह ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस तरह मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को संसार का हर सुख मिल सकता है और उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही मोक्ष भी मिलता है।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै । बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो ज्योतिषियों द्वारा बताई गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।