
Sankashti Chaturthi November 2025: हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य कहा जाता है यानी हर शुभ काम से पहले इनकी पूजा जरूर होती है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जाता है। अगहन मास की संकष्टी चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में इसका विशेष महत्व बताया गया है। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश और चंद्रमा की पूजा का विधान है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी से जानें नवंबर 2025 में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत कब करें…
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पंचांग के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 08 नवंबर, शनिवार की सुबह 07 बजकर 32 मिनिट से शुरू होगी जो 09 नवंबर, रविवार की तड़के 04 बजकर 25 मिनिट तक रहेगी। चूंकि चतुर्थी तिथि का चंद्रमा 8 नवंबर, शनिवार को उदय होगा, इसलिए इसी दिन गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाएगा।
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8 नवंबर, शनिवार को चंद्रमा उदय रात 7 बजकर 59 मिनिट पर होगा। इसके पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर लें और चंद्रमा उदय होने पर इसकी भी पूजा करें।
- 8 नवंबर, शनिवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प जरूर लें।
- संकल्प के अनुसार ही दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। किसी की चुगली न करें और न किसी पर क्रोध न करें।
- शाम को शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा घर में किसी साफ स्थान पर लकड़ी के पटिए पर स्थापित करें।
- सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा पर कुंकुम से तिलक करें, फूलों की माला पहनाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल, इत्र, सुपारी, जनेऊ, दूर्वा, पान, हल्दी, कुमकुम आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाएं।
- श्रीगणेश को ये चीजें चढ़ाते समय ऊं गं गणपतयै नम: मंत्र का जाप करते रहें। अपनी इच्छा भगवान को भोग लगाएं।
- इस तरह विधि-विधान से पूजा करने के बाद परिवार सहित श्रीगणेश की पहले दीपक से और बाद में कपूर से आरती करें।
- चंद्रमा उदय होने पर फूल-चावल, कुमकुम से इसकी भी पूजा करें। प्रसाद खा कर व्रत पूर्ण करें और फिर भोजन करें।
- जो व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा से भगवान श्रीगणेश की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।