10 सितंबर को करें संतान सप्तमी व्रत, जानें पूजा विधि-मंत्र, कथा सहित पूरी डिटेल

Santan Saptami 2024: संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए भाद्रपद मास में संतान सप्तमी का व्रत किया जाता है। इसे संतान सातें भी कहते हैं। इस बार ये व्रत सितंबर 2024 में किया जाएगा।

 

Manish Meharele | Published : Sep 8, 2024 4:14 AM IST / Updated: Sep 10 2024, 08:36 AM IST

Santan Saptami 2024 Kab Hai: धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को संतान सातें, अपराजिता सप्तमी और मुक्ताभरण सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान में इसे दुबली सातें या दुबड़ी सप्तमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की उम्र लंबी होती है और सेहत भी अच्छी रहती है। आगे जानिए कब करें ये व्रत, इसकी पूजा विधि, मंत्र, कथा सहित पूरी बातें…

कब है संतान सप्तमी 2024? (Kab Hai Santan Saptami 2024)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 09 सितंबर, सोमवार की रात 09 बजकर 53 मिनिट से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 10 सितंबर, मंगलवार की रात 11 बजकर 12 मिनिट तक रहेगी। चूंकि सप्तमी तिथि का सूर्योदय 10 सितंबर को होगा, इसलिए इसी दिन संतान सप्तमी का व्रत किया जाएगा।

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संतान सप्तमी की व्रत-पूजा विधि (Santan Saptami Puja Vidhi)
– संतान सप्तमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद हाथ में जल-चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर के किसी स्थान की अच्छे से सफाई करें और उसके ऊपर पटिया रखकर लाल कपड़ा बिछाएं। यहां शिवजी मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
– पानी का कलश भरकर इस पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और आम के पत्तों से ढंककर इसके ऊपर नारियल रख दें।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। भगवान शिव को फूल, जनेऊ, अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल, पान और सुपारी आदि चीजें चढ़ाएं।
–खीर-पुरी का प्रसाद और आटे और गुड़ से बने मीठे पुए का भोग लगाएं। पूजा के बाद संतान सप्तमी व्रत की कथा सुनें।
- कथा सुनने के बाद भगवान शिव जी आरती करें। इस दिन व्रत रखें। अपनी इच्छा अनुसार फल और दूध ले सकते हैं।
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, संतान सप्तमी का व्रत करने से संतान की सेहत ठीक रहती है और उम्र भी बढ़ती है।

संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat katha)
- किसी समय अयोध्या के राजा नहुष थे। उनकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। चंद्रवती की एक सहेली थी, जिसका नाम रूपवती था। एक दिन दोनों सहेली नदी स्नान करने गईं। वहां उन्होंने देखा कि सभी महिलाएं संतान सप्तमी की पूजा कर रही हैं।
- उन महिलाओं को देख रानी और उनकी सहेली ने भी संतान सप्तमी का व्रत करने का संकल्प लिया। लेकिन बाद में भूल गईं। अगले जन्म में वो रानी वानरी और ब्राह्मणी मुर्गी बनी। इसके बाद उन्हें पुन: मानव योनि में जन्म मिला।
- इस बार रानी चंद्रमुखी मथुरा के राजा की रानी बनी और ब्राह्मणी का नाम भूषणा था। इस जन्म में भी वे दोनों सहेली थीं और उनमें प्रेम भी था। भूषणा ने इस जन्म में संतान सप्तमी का व्रत किया, जिससे उसे आठ संतान हुई।
- रानी को इस जन्म में संतान साते का व्रत नहीं किया, जिसके कारण उसे कोई संतान नहीं हुई। भूषणा को पुनर्जन्म की बातें याद थी। उसने अपने पिछले जन्मों की बात जाकर रानी को बताई।
- भूषणा की बात सुनने के बाद रानी ने भी संतान सप्तमी का व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसे भी कईं योग्य संतान मिलीं। इस कथा को सुने बिना व्रत का संपूर्ण फल नहीं मिलता।


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Disclaimer
इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।


 

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