सार

Radha Janmashtami 2024: इस बार राधा जन्माष्टमी का पर्व 11 सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा देवी लक्ष्मी का ही अंशावतार थीं। जानें राधा अष्टमी से जुड़ी रोचक बातें।

 

Radha Janmashtami 2024 Details In Hindi: धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 11 सितंबर, बुधवार को है। आमजन देवी राधा को श्रीकृष्ण की प्रेयसी के रूप में जानते हैं। पुराणों के अनुसार, राधा कोई और नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी का ही अंशावतार थीं। आगे जानिए राधा अष्टमी पर कैसे करें पूजा, शुभ मुहूर्त, महत्व और आरती…

कौन-से शुभ योग बनेंगे राधा अष्टमी 2024 पर? (Radha Janmashtami Shubh Yog)
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, 11 सितंबर, बुधवार को राधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इसके साथा ही इस दिन दूर्वा अष्टमी, महालक्ष्मी व्रत आदि त्योहार भी मनाए जाएंगे। पंचांग के अनुसार इस दिन प्रीति, आयुष्मान और ध्वजा नाम के 3 शुभ योग बन रहे हैं। इतने सारे शुभ योगों के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।

राधा जन्माष्टमी 2024 शुभ मुहूर्त (Radha Janmashtami 2024 Shubh Muhurat)
- सुबह 06:16 से 07:47 तक
- सुबह 07:47 से 09:19 तक
- सुबह 10:51 से दोपहर 12:23 तक
- शाम 04:58 से 06:30 तक

इस विधि से करें राधा जन्माष्टमी व्रत-पूजा (Radha Janmashtami 2024 Puja Vidhi)
- 11 सितंबर, बुधवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल-चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर में किसी साफ स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और देवी राधा की प्रतिमा या चित्र एक पटिए के ऊपर स्थापित करें।
- पहले श्रीकृष्ण-राधा की प्रतिमा पर कुमकुम से तिलक लगाएं, शुद्ध घी का दीपक जलाएं और फूलों की माला पहनाएं।
- इसके बाद एक-एक करके अबीर, गुलाल, रोली, हल्दी, मेहंदी, चावल आदि चीजें राधाकृष्ण को अर्पित करें।
- श्रीकृष्ण को पीले और देवी राधा को लाल वस्त्र चढ़ाएं। इलाइची, लौंग, इत्र, जनेऊ, फल आदि चीजें भी अर्पित करें।
- अंत में भोग अपनी इच्छा अनुसार भोग लगाएं और रात में जागरण करें। अगले दिन व्रत का पारणा करें।

राधा देवी की आरती (Radha Devi Ki Aarti)
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,
विमल विवेकविराग विकासिनि ।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानुसुता की..॥
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,
मधुर मनोहर मूरति सोहनि ।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानुसुता की..॥
संतत सेव्य सत मुनि जनकी,
आकर अमित दिव्यगुन गनकी ।
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी,
अति अमूल्य सम्पति समता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानुसुता की..॥
। आरती श्री वृषभानुसुता की ।
कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि,
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि ।
जगजननि जग दुखनिवारिणि,
आदि अनादिशक्ति विभुता की ॥
॥ आरती श्री वृषभानुसुता की..॥
आरती श्री वृषभानुसुता की,
मंजुल मूर्ति मोहन ममता की


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