Sharad Purnima Ki Katha: शरद पूर्णिमा पर पढ़ें 2 बहनों की ये रोचक कथा, तभी मिलेगा व्रत का पूरा फल

Published : Oct 06, 2025, 09:21 AM IST
Sharad Purnima Ki Katha

सार

Sharad Purnima Ki Katha: आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात स्वयं देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं।

Sharad Purnima Katha In Hindi: इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 2 दिन मनाया जाएगा। 6 अक्टूबर, सोमवार को शरद पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा, वहीं 7 अक्टूबर, मंगलवार को स्नान-दान की पूर्णिमा रहेगी। शरद पूर्णिमा का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इसे कोजगारी पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक कथा भी है। जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा का व्रत करता है, उसे ये कथा जरूर सुननी चाहिए। तभी इस व्रत का पूरा फल मिलता है। आगे जानिए शरद पूर्णिमा की कथा…

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शरद पूर्णिमा व्रत की कथा (Sharad Purnima Vrat Ki Katha)

किसी समय एक गांव में 2 बहनें रहती थीं। दोनों ही बहनें हर पूर्णिमा पर व्रत करती थीं। बड़ी बहन प्रत्येक पूर्णिमा का व्रत बहुत ही श्रद्धा से करती थी और नियमों का पालन करती थीं। जबकि छोटी बहन सिर्फ दिखावे के लिए ही पूर्णिमा का व्रत करती थी और नियमों का पालन भी नहीं करती थी।

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जब ये दोनों बड़ी हो गई तो इनके पिता ने इनका विवाह योग्य युवकों से करवा दिया। समय आने पर बड़ी बहन ने स्वस्थ शिशुओं को जन्म दिया, जबकि छोटी बहन को लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई और जब संतान हुई तो जन्म लेते ही उसकी मृत्यु हो गई। इससे छोटी बहन उदास रहने लगी।
एक प्रसिद्ध संत ने जब छोटी बहन ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि ‘तुम बिना नियमों और श्रद्धा के पूर्णिमा व्रत करती थी, इस वजह से तुम्हारे साथ ऐसा हो रहा है। यदि तुम पूर्ण श्रद्धा व समर्पण से पूर्णिमा व्रत का पालन करोगी, तो चंद्रदेव की कृपा से तुम्हारा अशुभ समय समाप्त हो जायेगा।’
छोटी बहन को अपनी गलती का अनुभव हुआ उसने शरद पूर्णिमा का व्रत पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से किया। इस व्रत के फल से उसने एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी भी मृत्यु हो गई। छोटी बहन जानती थी कि उसकी बड़ी बहन ने इस मृत शिशु को पुन: जीवित कर सकती है।
छोटी बहन ने अपने मृत शिशु कपड़े से ढंककर शैया पर लिटा दिया और अपनी बहन को घर पर आमंत्रित किया। घर आकर जब बहन शैया पर बैठी तो अनायास ही उसका स्पर्श मृत शिशु से हो गया और वह शिशु पुनर्जीवित हो गया। ये देख छोटी बहन बहुत खुश हुई और पूरी बात बड़ी बहन को बता दी।
छोटी बहन ने बताया कि ‘पूर्णिमा व्रत करने आपके ऊपर चंद्रदेव की विशेष कृपा है। उस व्रतों के फल से ही आपके द्वारा स्पर्श किए जाने से मेरा ये मृत पुत्र पुनर्जीवित हो गया है।’ तभी से शरद पूर्णिमा का व्रत करने की परंपरा शुरू हुई। धीरे-धीरे शरद पूर्णिमा का व्रत लोकप्रिय हो गया।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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