29 या 30 अक्टूबर, कब मनाएं धनतेरस? जानें पूजा विधि-मंत्र और दिन भर के मुहूर्त

Kab Hai Dhanteras 2024: दीपावली उत्सव की शुरूआत धनतेरस से होती है। इस दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। अकाल मृत्यु से बचने के लिए शाम को दीपदान भी किया जाता है।

 

Manish Meharele | Published : Oct 22, 2024 4:47 AM IST / Updated: Oct 22 2024, 01:17 PM IST

When is Dhanteras 2024: धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा मुख्य रूप से की जाती है। व्यापारी इस दिन अपने बही खातों के साथ धन के देवता कुबेर की पूजा भी करते हैं। धनतेरस की शाम को यमराज की प्रसन्न के लिए दीपदान भी किया जाता है। जानें इस बार कब है धनतेरस 2024, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…

कब है धनतेरस 2024? (Dhanteras 2024 Kab Hai)
काशी की बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.विनय कुमार पांडेय के अनुसार, इस बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर, मंगलवार की सुबह 10:32 से शुरू होकर 30 अक्टूबर, बुधवार की दोपहर 01:15 तक रहेगी। चूंकि धनतेरस की पूजा प्रदोष काल यानी शाम को होती है इसलिए ये पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन त्रिपुष्कर और इंद्र नाम के शुभ योग भी बनेंगे।

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धनतेरस 2024 पूजा मुहूर्त (Dhanteras 2024 Puja Muhurat)
- 29 अक्टूबर को धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 31 मिनिट से शुरू होकर रात 08 बजकर 13 मिनिट तक रहेगा।
- यमराज के लिए दीपदान करने का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 38 मिनिट से शुरू होगा, जो 06 बजकर 55 मिनिट तक रहेगा।

धनतेरस 2024 शॉपिंग मुहूर्त (Dhanteras 2024 Shopping Muhurat)
धनतेरस पर खरीदी का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन की गई खरीदी लंबे समय तक फायदा देती है। इन्वेस्टमेंट के लिए भी ये दिन शुभ माना जाता है। जानें धनतेरस पर खरीदी और इन्वेस्टमेंट के शुभ मुहूर्त…
- सुबह 09:22 से 10:46 तक
- सुबह 10:46 से दोपहर 12:10 तक
- दोपहर 12:10 से 01:34 तक
- दोपहर 02:58 से 04:22 तक
- शाम 06:31 से 08:13 तक
- शाम 08:31 से 08:27 तक

धनतेरस पर इस विधि से करें भगवान धन्वंतरि की पूजा (Dhanteras 2024 Puja Vidhi)
- 29 अक्टूबर, मंगलवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और हाथ में जल-चावल लेकर पूजा-व्रत का संकल्प लें।
- शाम को शुभ मुहूर्त में साफ कपड़े पहनकर भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या चित्र एक लकड़ी के पटिया के ऊपर स्थापित करें।
- नीचे लिखा मंत्र बोलकर भगवान धन्वंतरि का आह्वान करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
- भगवान धन्वंतरि के चित्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं, कुमकुम से तिलक करें और फूलों की माला पहनाएं।
- इसके बाद गंध, अबीर, गुलाल रोली, आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। वस्त्र (मौली) अर्पण करें। पान, लौंग, सुपारी भी चढ़ाएं।
- भगवान धन्वंतरि को शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि औषधियां भी अर्पित करें। खीर का भोग विशेष रूप से लगाएं।
- पूजा के बाद ऊं धन्वंतरये नमः मंत्र का जाप भी अपनी इच्छा अनुसार करें। अंत में भगवान धन्वंतरि की आरती करें।

भगवान धन्वंतरि की आरती (Aarti of Lord Dhanvantari)
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।

ये है धनतरेस की रोचक कथा (Kyo Manate Hai Dhanteras)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र में छिपी संपत्ति को बाहर निकालने के लिए देवताओं और असुरोंन ने समुद्र मंथन की योजना बनाई। वासुकि नाग की नेती यानी रस्सी बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन शुरू किया गया। समुद्र मंथन से एक के बाद बाद कई रत्न निकले जैसे अप्सराएं, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, देवी लक्ष्मी, उच्चैश्रवा घोड़ा आदि। सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर निकले। अमृत कलश के लिए देवता और असुरों में युद्ध होने लगा जो 12 साल तक चला। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर देवताओं को अमृत पिला दिया और असुर को कुछ नहीं मिला। अमृत पीकर देवताओं ने असुरों को हरा दिया। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को ही भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर निकले थे, इसलिए हर साल इस तिथि पर धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।


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Disclaimer
इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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