
Parivartini Ekadashi 2024 Details: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को परिवर्तिनी कहते हैं। कईं धर्म ग्रंथों में इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा गया है। इसके बारे में कहा जाता है श्रीकृष्ण ने पहली बार इसी एकादशी पर करवट ली थी, इसलिए इसका नाम परिवर्तिनी है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में विशेष पूजा, आरती की जाती है, साथ ही विशेष उत्सव भी मनाए जाते हैं। आगे जानिए कब है परिवर्तिनी एकादशी 2024, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 13 सितंबर, शुक्रवार की रात 10 बजकर 30 मिनिट से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 14 सितंबर, शनिवार की रात 08 बजकर 41 मिनिट तक रहेगी। चूंकि 14 सितंबर, शनिवार का सूर्योदय एकादशी तिथि में होगा, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा।
14 सितंबर, शनिवार को ग्रह-नक्षत्रों के संयोग से चर और सुस्थिर नाम के 2 शुभ योग दिन भर रहेंगे। वहीं सर्वार्थसिद्धि नाम का शुभ योग भी कुछ देर के लिए बनेगा। इस दिन सिंह राशि में बुध और सूर्य का युति भी रहेगी, जिससे बुधादित्य नाम का राजयोग बनेगा। ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त…
- सुबह 07:48 से 09:19 तक
- सुबह 11:57 से दोपहर 12:46 तक
- दोपहर 12:22 से 01:53 तक
- दोपहर 03:24 से 04:56 तक
- परिवर्तिनी एकादशी से एक दिन पहले यानी 13 सितंबर, शुक्रवार से ही व्रत के नियमों का पालन करें। इस दिन रात को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- 14 सितंबर की सुबह उठकर स्नान आदि करें और हाथ में जल-चावल लेकर व्रत का संकल्प लें। घर का कोई हिस्सा अच्छी तरह से साफ करें और गंगाजल से पवित्र करें।
- शुभ मुहूर्त में उस स्थान पर एक लकड़ी का पटिया रखकर उसके ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को तिलक लगाएं, हार पहनाएं। दीपक जलाएं।
- इसके बाद फूल, चावल, अबीर, गुलाल, इत्र, आदि चीजें एक-एक करके भगवान को चढ़ाते रहें। पूजा करते समय ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमो मंत्र का जाप करते रहें।
- अंत में अपनी इच्छा अनुसार भगवान को भोग लगाएं, आरती करें। व्रत की कथा भी सुनें, दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। संकल्प के अनुसार फलाहार कर सकते हैं।
- रात में सोए नहीं, भगवान की प्रतिमा के समीप ही बैठकर भजन-कीर्तन करें। अगले दिन यानी 15 सितंबर, रविवार को ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर विदा करें।
- इसके बाद ही अपना व्रत पूर्ण करें और स्वयं भोजन करें। ग्रंथों के अनुसार, इस तरह जो भी परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करता है, उसे अपनी जीवन में हर सुख मिलता है।
- एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से परिवर्तिनी एकादशी की कथा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था।’
- ’तब भगवान विष्णु वामन रूप में बलि के पास गए और उनसे से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने उन्हें ये वरदान दे दिया। भगवान वामन ने दो पग में धरती और आकाश को नाप लिया।’
- ‘जब तीसरा पैर रखने की जगह न बची तो उन्होंने बलि से पूछा ‘मैं अपना तीसरा पग कहां रखूं?’ राजा बलि ने कहा कि ‘आप तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए।’ ऐसा करने से बलि पाताल में चले गए।’
- बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। जो भी व्यक्ति परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत करता है और कथा सुनता है, वो पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।’
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Disclaimer
इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।