
ashadha gupt navratri Kab se Shuru Hogi: धर्म ग्रंथों के अनुसार, आषाढ़ मास में भी नवरात्रि पर्व मनाया जाता है। इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। ये नवरात्रि तांत्रिकों के लिए विशेष शुभ फल देने वाली मानी गई है। इस गुप्त नवरात्रि में तंत्र-मंत्र से देवी की संहारक शक्तियों को प्रसन्न कर विशेष सिद्धियां प्राप्त की जाती है। देवी की पूजा में मांस-मदिरा का उपयोग भी होता है। जानें इस बार कब से शुरू होगी आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि, पहले दिन कैसे करें देवी की पूजा और घट स्थापना के शुभ मुहूर्त…
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का पर्व इस महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 26 जून से शुरू होकर 4 जुलाई तक मनाया जाएगा। इन 9 दिनों में रोज देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाएगी। वहीं 10 महाविद्याओं की आराधना भी इस नवरात्रि में करने की परंपरा है।
26 जून, गुरुवार को गुप्त नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के 2 शुभ मुहूर्त रहेंगे। इन दोनों में से किसी भी मुहूर्त में आप घट स्थापना कर सकते हैं। ये हैं वो शुभ मुहूर्त-
- सुबह 05:25 से 06:58 तक
- सुबह 11:56 से दोपहर 12:52 तक (अभिजीत मुहूर्त)
चौड़े मुंह वाली मटकी, गंगाजल, अशोक के पत्ते, सुपारी, जटा वाला नारियल, चावल, लाल या सफेद वस्त्र और फूल, सिक्का, साबूत, हल्दी और दूर्वा।
- जहां आप घट स्थापना करना चाहते हैं, उस स्थान को अच्छी तरह से साफ करें और गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें।
- इस स्थान पर लकड़ी का एक बड़ा और चौड़ा पटिया रखकर इसके ऊपर लाल या सफेद कपड़ा बिछाएं।
- इसके ऊपर मिट्टी से बनी मटकी को इस तरह रखें कि ये हिले-डुले नहीं। इस मटकी को शुद्ध जल से भर लें।
- मटकी में थोड़ा सा गंगाजल डालें। साथ ही चावल, फूल, दूर्वा, कुमकुम, साबूत हल्दी और पूजा की सुपारी भी डालें।
- मटकी पर नारियल रखकर इसे ढंक दें। इस पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और मुख पर पूजा का धागा बांधे।
- नारियल पर भी कुमकुम से तिलक लगाएं। ऐसा करते समय ये मंत्र बोलें-
ओम धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा।
दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।।
ओम वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।।
ओम भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण।
ओम अपां पतये वरुणाय नमः
- शुद्ध घी का दीपक जलाकर मटकी के पास रख दें। ये दीपक पूरे 9 दिनों तक लगातार जलते रहना चाहिए।
- इसके बाद देवी मां की आरती करें। साथ ही दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप भी करें। इससे आपकी हर इच्छा पूरी होगी।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।