Adi Shankaracharya Jayanti 2023: हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में महती भूमिका निभाई। आदि गुरु शंकराचार्य भी इनमें से एक थे। इन्हें भगवान शिव का अवतार भी कहते हैं। इनकी जयंती 25 अप्रैल, मंगलवार को है।
उज्जैन. जिस समय हिंदू धर्म का लगातार पतन हो रहा था और अन्य धर्मों का प्रभाव हमारे देश में बढ़ रहा था, उस समय आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया और कई नई व्यवस्थाएं लागू की। (Adi Shankaracharya Jayanti 2023) शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 25 अप्रैल, मंगलवार को है। आगे जानिए आदि गुरु शंकराचार्य से जुड़ी खास बातें…
केरल में हुआ था जन्म
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता शिवगुरु नामपुद्र और माता का नाम विशिष्ठा देवी था। आदि गुरु शंकराचार्य ने कम उम्र में ही सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लिया और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए तीर्थाटन का मार्ग चुना। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई उनकी टीकाएं आज भी काफी प्रसिद्ध हैं।
8 वर्ष की उम्र में पढ़ डाले सारे वेद
आदि गुरु शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि…
अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित्
षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्
अर्थ- आदि शंकराचार्य 8 वर्ष की आयु में चारों वेदों में निपुण हो गए, 12 वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, 16 वर्ष की आयु में शांकरभाष्य तथा 32 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
4 मठों की स्थापना की
आदि शंकराचार्य ने देश के अलग-अलग हिस्सों में चार मठ बनाए। इनके नाम हैं- श्रृंगेरी मठ, गोवर्धन मठ, शारदा मठ और ज्योतिर्मठ। आदि गुरु शंकराचार्य ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जो बाद में खुद शंकराचार्य कहे जाते हैं। सभी 13 अखाड़े इन मठों के अंतर्गत ही आते हैं और यहीं से संचालित भी होते हैं।
यहा हैं समाधि
आदि गुरु शंकाराचार्य की समाधि केदारनाथ में स्थित है। जब केदारनाथ को आम लोगों के लिए खोला जाता है तो यहां भी भक्तों का तांता लगा रहता है। केदारनाथ में शंकराचार्य की समाधि बेहद लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। ऐसा भी कहते हैं कि वर्तमान में केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों का निर्माण भी आदि गुरु शंकराचार्य ने ही करवाया था।
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