Bhagoriya Festival 2023: आधुनिक स्वयंवर का रूप है भगोरिया उत्सव, यहां लड़के-लड़की खुद चुनते हैं अपना जीवनसाथी

Bhagoriya Festival 2023: इस बार होलिका दहन 7 मार्च को होगा और इसके अगले दिन यानी 8 मार्च को धुरेड़ी (होली) पर्व मनाया जाएगा। होली एक ऐसा पर्व है जो देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है।

 

उज्जैन. होली के मौके पर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के झाबुआ (Jhabua) क्षेत्र में भगोरिया (Bhagoriya Festival 2023) उत्सव मनाया जाता है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। ये आदिवासियों का मुख्य पर्व है। इस उत्सव में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। और भी कई परंपराएं इस उत्सव को बहुत खास बनाती हैं। इस बार भगोरिया उत्सव की शुरूआत 1 मार्च से हो चुकी है। ये पर्व होली (Holi 2023) तक मनाया जाएगा। आगे जानिए इस उत्सव से जुड़ी खास बातें…

इस उत्सव में दिखती है आदिवासी संस्कृति की झलक
भगोरिया उत्सव के अंतर्गत रंग-बिरंगे पारंपरिक लिबास पहने आदिवासी हर जगह नजर आते हैं। मांदल (पारंपरिक वाद्य यंत्र) की थाप और बांसुरी की सुरीली पर झूमते-नाचते आदिवासियों को देखकर हर कोई झूमने लगता है। इस दृश्य को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश भी लोग यहां आते हैं। वैसे तो होली के पहले कई स्थानों पर भगोरिया उत्सव मनाया जाता है, लेकिन इन सभी में ग्राम वालपुर का भगोरिया सबसे खास माना जाता है, क्योंकि यहां एक साथ तीन प्रांतों की संस्कृति के दर्शन होते हैं।

एक तरह का स्वयंवर है ये उत्सव
भगोरिया एक तरह का स्वयंवर है, जहां विवाह योग्य लड़के-लड़कियां अपना मनचाहा जीवनसाथी चुनते हैं। इस उत्सव के दौरान अगर किसी युवक को कोई युवती पसंद आ जाए तो वह उसे पान देकर रिझाने की कोशिश करता है। युवती अगर ये पान उस युवक से ले लेती है तो वे दोनों रजामंदी से मेले से भाग जाते हैं और तब तक घर नहीं लौटते, जब तक की दोनों के परिवार उनकी शादी के लिए राजी ना हो जाए। इस तरह ये मेला आधुनिक स्वयंवर का जीता-जीगता उदाहरण है।

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इसलिए नाम पड़ा भगोरिया (Know the history of Bhagoria)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, झाबुआ जिले के ग्राम भगोर में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भृगु ऋषि ने तपस्या की थी। कहते हैं कि हजारों सालों से आदिवासी समाज के लोग भव यानी शिव और गौरी की पूजा करते आ रहे हैं। इसी से भगोरिया शब्द की उत्पत्ति हुई है। किसी समय इस मंदिर में पहले भगवान शिव- पार्वती की पूजा की जाती थी और इसके बाद ही भगोरिया पर्व शुरू होता था।

कैसे हुई भगोरिया उत्सव की शुरूआत? (How did the Bhagoriya festival begin?)
भगोरिया उत्सव क्यों मनाया जाता है और इसकी शुरूआत कैसे हुई, इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। उसी के अनुसार, दो भील राजाओं कासूमार और बालून ने मिलकर अपनी राजधानी भगोर में पहली बार भगोरिया उत्सव का आयोजन किया था। इसके बाद ये एक परंपरा बन गई। एक अन्य मान्यता के अनुसार, भील जनजाति की परंपरा के अनुसार, विवाद के समय लड़के पक्ष को लड़कियों को दहेज न देना पड़े, इसलिए उत्सव की शुरूआत हुई। जहां पक्ष आपसी रजामंदी से लड़के-लड़कियों का विवाह करवाते हैं।

कब कहां मनाया जाएगा भगोरिया उत्सव? (bhagoriya festival Dates 2023)
भगोरिया उत्सव की शुरूआत 1 मार्च को चांदपुर, बरझर, बोरी, खट्टाली हाट से हो चुकी है। 7 मार्च तक झाबुआ जिले के अलग-अलग स्थानों पर भगोरिया उत्सव मनाया जाएगा। आगे जानिए कब कहां होगा भगोरिया उत्सव का आयोजन…
2 मार्च - फुलमाल, सोंडवा, जोबट
3 मार्च - कठ्ठीवाड़ा, वालपुर, उदयगढ
4 मार्च - नानपुर, उमराली
5 मार्च - छकतला, सोरवा, आमखुट, झीरण, कनवाड़ा, कुलवट
6 मार्च - आलीराजपुर, आजादनगर, बड़ा गुड़ा
7 मार्च - बखतगढ़, आंबुआ


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