Published : Jul 31, 2025, 04:56 PM ISTUpdated : Jul 31, 2025, 08:52 PM IST
Sudama Shri krishna Friendship Special: अगस्त के दिन फ्रेंडशिप डे मनाया जाने वाला है। इस दिन दोस्ती के जश्न को मनाया जाता है। जब भी दोस्ती की बात होती है सुदामा और भगवान श्री कृष्ण की दोस्ती याद आती है। जानें उनकी दोस्ती की अद्भुत दास्तां यहां।
Shri Krishna-Sudama Milan: हर किसी इंसान की जिंदगी में दोस्ती महत्व रखती है। ये वो रिश्ता होता है, जिसे हम खुद बनाते और चुनते भी हैं। 3 अगस्त 2025 के दिन फ्रेंडशिप डे मनाया जाने वाला है। इस दिन दोस्ती के खूबसूरत रिश्ते को सेलिब्रेट किया जाता है। अब दोस्ती की बात हो रही है तो कोई श्री कृष्ण और सुदामा को कोई कैसे भूल सकता है। सुदामा श्री कृष्ण के बचपन के दोस्त थे। सुदामा को श्री कृष्ण का सच्चा भक्त भी कहा जाता है।
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पत्नी वसुंधरा ने याद दिलाई श्री कृष्ण की दोस्ती
श्री कृष्ण एक राजसी परिवार में पैदा हुए थे। वहीं, सुदामा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन इन सभी चीजों का असर उनकी दोस्ती पर कभी नहीं पड़ा। कई सालों तक वो एक-दूसरे से मिले भी नहीं, लेकिन एक-दूसरे को हमेशा दिल से याद करते रहते थे। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा ने गुरुकुल और गुरु संदीपनी के मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद दोनों अलग हो गए। जिस वक्त सुदामा और उनका परिवार गरीब से जूझ रहा था उस दौरान उनकी पत्नी वसुंधरा ने उन्हें बचपन के मित्र श्री कृष्ण की उन्हें याद दिलाई। साथ ही उनसे मदद मांगने के लिए आग्रह किया।
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जब सुदामा को गले लगाए रहे श्री कृष्ण
सुदामा ने मदद के नाम पर श्री कृष्ण से मिलने से इनकार कर दिया था, वो केवल एक दोस्त के तौर पर उनसे मिलना चाहते थे। जब सुदामा द्वारका नरेश के महल पहुंचे तो द्वारपालों ने उनके फटे कपड़ों और खराब हालत को देखकर उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। सुदामा ने द्वारपालों को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं माने। ये सूचना जैसे ही श्री कृष्ण के पास पहुंची तो वो भागते हुए उनके पास पहुंचे। सुदामा की सामाजिक स्थिति का विचार की बिल्कुल भी फिक्र न करते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें काफी देर तक गले लगाए रखा। फूलों की बरसात के साथ उनका स्वागत किया गया।
महल में लौटने के बाद श्री कृष्ण ने सुदामा को शाही कपड़े दिए। श्री कृष्ण की तरफ से मिल रहे प्यार को देखकर सुदामा रोने लगे। भोजन करने के बाद दोनों आराम कर रहे थे और अपने पुराने दिनों को ताजा कर रहे थे। उस वक्त कृष्ण ने देखा कि सुदामा उनसे कुछ छुपा रहे थे। श्री कृष्ण ने कहा,' मुझे लग ही रहा था कि मेरे लिए भाभी जी ने कोई उपहार भेजा है। यह मेरे लिए कोई स्वादिष्ट व्यंजन है। सुदाना ने उसे छिपा दिया क्योंकि उन्हें लग रहा था कि द्वारका के राजा के लिए ये बहुत छोटा सा तोहफा है। श्री कृष्ण ने उन चावल को स्वीकार किया और उन्हें खाया।
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श्री कृष्ण ने बिना मांगे दिया बहुत कुछ
जब लौटने का वक्त आया तब तक सुदामा ने उन्हें अपने आने का कारण नहीं बताया था। वो बिना कुछ बोले वहां से चले आएं, लेकिन जब वो अपने घर वापस लौटे तो उनकी गरीब की समस्या श्री कृष्ण ने पहले ही दूर कर दी थी। उन्हें धन और संपत्ति से पुरस्कृत किया। इससे ये पता चलता है कि अपने दोस्त की पीड़ भगवान श्री कृष्ण बिना कहे जान गए और उनकी मदद भी उनकी भनक के बिना खूबसूरत तरीके से कर दी। एक मुट्ठी चावल खान के बाद एक लोक की संपत्ति दे दी और दूसरी मुट्ठी चावल खाने के बाद दूसरे लोक की। जब तीसरी मुट्ठी चावल की बात आई तो रुक्मणि ने कृष्ण जी का हाथ पकड़कर कहा कि अगर आप तीनों लोक की संपत्ति सुदामा को दे देंगे तो आपकी प्रजा के लिए क्या बचेगा? ये सुनकर श्री कृष्ण रुक गए।