Ganesh Visarjan Ki Katha: इस बार गणेश उत्सव 16 सितंबर तक मनाया जाएगा। इसके अगले दिन 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। गणेश प्रतिमा का विसर्जन क्यों किया जाता है, इससे जुड़ी एक रोचक कथा है।
Kyo Karte Hai Ganesh Prtima Ka Visarjan: हर साल भाद्रपद मास में 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। 10 दिनों के बाद यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी यानी अनंत चतुर्दशी पर इन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। इस बार अनंत चतुर्दशी का पर्व 17 सितंबर, मंगलवार को है। भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा विसर्जन से जुड़ी एक रोचक कथा गणेश पुराण में मिलती है। बहुत कम लोग इस कथा के बारे में जानते हैं। जानें गणेश प्रतिमा विसर्जन से जुड़ी ये रोचक कथा…
जब श्रीगणेश ने लिखी महाभारत
प्रचलित कथा के अनुसार, द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास हुए, उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की। इन्हें भगवान विष्णु का ही अवतार भी माना जाता है। महर्षि वेदव्यास ने जब महाभारत ग्रंथ की मन ही मन रचना की तो उसे लिखने के लिए श्रीगणेश को आमंत्रित किया।
श्रीगणेश ने रखी एक शर्त
महर्षि वेदव्यास के कहने पर श्रीगणेश महाभारत लिखने के लिए तैयार तो हो गए, लेकिन उन्होंने कहा कि ‘लिखते समय मेरी कलम रुकनी नहीं चाहिए तो ही मैं ये काम करूंगा।’ तब वेदव्यास ने कहा कि ‘मैं जो भी बोलूंगा, उसे पहले आप समझें, इसके बाद ही लिखें।’ दोनों ने एक-दूसरे की शर्त मान ली।
10 दिन में लिखी गई महाभारत
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के श्लोक बोलने शुरू किए और श्रीगणेश उन्हें लिखने लगे। बीच-बीच में महर्षि वेदव्यास कुछ रहस्यमयी श्लोक बोल देते, जिन्हें समझने में श्रीगणेश को थोड़ा समय लगता, इतनी देर में महर्षि कुछ और श्लोकों की रचना कर देते। ये क्रम 10 दिनों तक चलता रहा।
महर्षि ने किया श्रीगणेश का अभिषेक
10 दिनों तक लगातार महाभारत लिखने के कारण श्रीगणेश के शरीर का तापमान काफी बढ़ गया। महर्षि वेदव्यास ने जब ये देखा तो उन्होंने श्रीगणेश को तालाब में स्नान करवाया और अभिषेक भी किया। उन्हें खाने के लिए कई चीजें भी दी। ऐसा करने से श्रीगणेश काफी प्रसन्न हुए।
इसलिए करते हैं गणेश प्रतिमा का विसर्जन
10 दिनों तक लगातार लिखने के बाद महाभारत का लेखन संपन्न हुआ और इसके बाद जब श्रीगणेश ने तालाब में स्नान किया तो तभी से ये परंपरा शुरू हुई कि 10 दिनों तक पूजा करने के बाद उनकी प्रतिमा का विसर्जन कर देना चाहिए। यही परंपरा आज भी चली आ रही है।
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