Hindu Tradition: मंदिर में प्रवेश से ठीक पहले जरूर किया जाता है ये काम, बहुत कम लोग जानते हैं इसके पीछे का कारण

Hindu Tradition: हम देखते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है तो सबसे पहले वह मंदिर की सीढ़ियों को छूकर प्रणाम करता है, इसके बाद ही वह अंदर प्रवेश करता है। ये हिंदू परंपरा का एक हिस्सा है।

 

Manish Meharele | Published : Jan 23, 2023 10:54 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म में मंदिर जाने की परंपरा है। हालांकि ये परंपरा अनिवार्य नहीं बल्कि स्वैच्छिक है, लेकिन फिर लोग अपनी श्रृद्धा से मंदिर जरूर जाते हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले और बाद में बहुत सी बातों का ध्यान रखा जाता है। जैसे मंदिर में प्रवेश करने से पहले जूते-चप्पल और चमड़े का बेल्ट व पर्स बाहर रखा जाता है। (Hindu Tradition) मंदिर में जाकर परिक्रमा भी जरूर की जाती है। एक और काम जो सभी करते हैं, वो ये कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले सीढ़ियों को छूकर प्रणाम जरूर किया जाता है। इस परंपरा के पीछे क्या कारण है, कोई नहीं जानता। आज हम आपको इसी परंपरा से जुड़े तथ्यों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं…

अंहकार छोड़कर मंदिर में प्रवेश करें
मंदिर में प्रवेश करने से पहले सीढ़ी को झुककर प्रणाम करना हमें सीखाता है कि हम जहां आए हैं वो ईश्वर का घर है। यहां अपने अंहकार को बाहर छोड़कर भी अंदर जाना होता है, तभी हमें ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती है। अंहकाररहित व्यक्ति ही ईश्वर की कृपा का पात्र बन सकता है। इसलिए मंदिर में प्रवेश करने से पहले सीढ़ियों को छूकर प्रणाम किया जाता है।


स्वयं के आत्मसमर्पण का प्रतीक
जब हम मंदिर की सीढ़ियों को छूते हैं तो ये हमारे आत्मसमर्पण का प्रतीक भी होता है। आत्मसमर्पण ईश्वर के प्रति। यानी इसका सीधा अभिप्राय ये होता है कि है ईश्वर मैंने स्वयं को तेरे अधीन कर दिया है अब आप ही मेरे रक्षक हो। मेरा मार्गदर्शन करें और मुझे सही रास्ता दिखाएं। ये भाव मन में आते ही ईश्वर भी आपको अपनी शरण में ले लेता है और आपकी मनोकामना पूरी करता है।


ईश्वर के पैरों का प्रतीक है सीढ़ियां
कुछ विद्ववानों ने मंदिर को साक्षात ईश्वर का ही स्वरूप माना है। इसके अनुसार, मंदिर की शिखर ईश्वर का मुख है और गर्भगृह, दीवारें, प्रांगण आदि शरीर। वहीं मंदिर की सीढ़ियां ईश्वर के पैरों के समान हैं। सबसे पहले मंदिर की सीढ़ियों को छूकर ये माना जाता है कि हमने ईश्वर के चरणों को स्पर्श कर लिया है। यही भाव इस परंपरा के अंतर्गत निहित है।


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