Hindu Tradition: इस रस्म के बिना पूरा नहीं होता विवाह, इसके बाद ही वर-वधू कहलाते हैं ‘पति-पत्नी’

Hindu Tradition: हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार बताए गए हैं। इनमें से विवाह भी एक महत्वपूर्ण संस्कार है। विवाह के दौरान अनेक परंपराओं का पालन किया जाता है जैसे फेरे, 7 वचन आदि। सप्तपदी इन परंपराओं में सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है।

 

Manish Meharele | Published : Feb 7, 2023 2:51 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म में विवाह को न सिर्फ दो लोगों बल्कि दो परिवार का मिलन कहा जाता है। इस दौरान कई परंपराओं का पालन किया जाता है। (Hindu Tradition) विवाह के दौरान पहले लड़की को लड़के दाईं और बैठाया जाता है और कुछ देर बाद लड़के के बाईं ओर बैठाया जाता है। ये कार्य सप्तपदी (Saptapadi tradition) के बाद किया जाता है। महाभारत (Mahabharata) के अनुसार, जब तक सप्तपदी की रस्म पूरी नहीं होती, तब तक लड़की में पत्नीत्व की सिद्धि नहीं होती। यानी सप्तपदी के बाद ही वधू पत्नी बनती है। आगे जानिए क्या होती है सप्तपदी और इसके बाद पत्नी को पति की बाईं ओर क्यों बैठाया जाता है…


क्या है सप्तपदी की रस्म?
विवाह के दौरान फेरे लेने के बाद सप्तपदी की रस्म निभाई जाती है। इसके अंतर्गत वर-वधू के सामने चावल की 7 ढेरी बनाई जाती है। इसके बाद एक-एक मंत्र बोलकर इन चावल की ढेरियों को पैर की अंगुलियों से मिटाया जाता है। इस दौरान 7 मंत्र बोले जाते हैं। पहला मंत्र अन्न के लिए, दूसरा बल के लिए, तीसरा धन के लिए, चौथा सुख के लिए, पाँचवा परिवार के लिए, छठवाँ ऋतुचर्या के लिए और सातवाँ मित्रता के लिए बोला जाता है। ऐसी आशा की जाती है कि वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी इन बातों का ध्यान रखकर जीवन-यापन करेंगे।


इसके बाद बाईं ओर बैठाया जाता है पत्नी को
सप्तपदी के बाद वधू को वर के बाईं ओर बैठाया जाता है क्योंकि तब वह वामांगी बन जाती है। वामांगी पत्नी को ही कहते हैं। वामांगी का अर्थ होता है बाएं अंग की अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। इसके पीछे एक कारण ये भी है कि भगवान शिव के बाएं अंग से ही शक्ति की उत्पत्ति हुई है। विशेष धार्मिक अवसरों पर पत्नी को पति के बाएं हाथ की ओर ही बैठाया जाता है।


महाभारत में भीष्म ने बताया है सप्तपदी का महत्व
महाभारत के अनुसार, जब भीष्म पितामाह तीरों की शैय्या पर लेटे थे, उस समय उन्होंने युधिष्ठिर को अनेक सांसारिक बातों का ज्ञान दिया था। भीष्म ने ये भी बताया था कि जब तक वर-वधू सप्तपदी की रस्म पूरी नहीं करते, तब तक दोनों पति-पत्नी नहीं बनते। सप्तपदी के बाद ही लड़की में पत्नीत्व की सिद्धि होती है। इसके बाद ही उसे पत्नी के अधिकार प्राप्त होते हैं।


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