Holi 2023: क्यों मनाते हैं होली उत्सव? इस पर्व से जुड़ी हैं ये 4 रोचक और रहस्यमयी कथाएं

Holi 2023: होली का त्योहार रंगों का पर्व है। इस दिन हर कोई एक-दूसरे को रंग लगाकर खुशियां मनाता है। इसके एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। इस बार 7 मार्च को होलिका दहन और 8 मार्च को होली खेली जाएगी।

 

Manish Meharele | Published : Feb 21, 2023 4:29 AM IST / Updated: Feb 22 2023, 12:20 PM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर होलिका दहन (Holika Dahan 2023) किया जाता है और इसके अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा पर होली, जिसे धुरेड़ी भी कहते हैं खेली जाती है। धुरेड़ी में लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर बधाइयां देते हैं। होली (Holi 2023) उत्साह और भाईचारे का पर्व है। होली उत्सव क्यों मनाया जाता है, इससे जुड़ी कई कथाएं (Holi Stories) और मान्यताएं (Holi Tradition) प्रचलित हैं। कुछ कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती है तो कुछ दंतकथाओं के रूप में सुनने को मिलती हैं। आगे जानिए होली से जुड़ी इन कथाओं के बारे में…

भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है होली की कथा
होली से जुड़ी सबसे प्रमुख कथा भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है, उसके अनुसार किसी समय राक्षसों का एक पराक्रमी राजा था, जिसका नाम हिरयण्यकश्यप था मगर उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति करता था। ये बात जब हिरयण्कश्यप को पता चली तो उसे बहुत क्रोध आया। उसने पहले प्रह्लाद को समझाने का काफी प्रयत्न किया। लेकिन जब किसी भी तरह प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने उसका वध करने का निर्णय लिया। इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया और कहा कि तुम प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ। होलिका ने ऐसा ही किया, होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। जब होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वह स्वयं जल गई और प्रह्लाद बच गया। तभी से होली पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जा रहा है।

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जब बच्चों ने किया राक्षसी का वध
होली से जुड़ी एक कहानी राक्षसी ढुण्डा से जुड़ी है। उसके अनुसार, सूर्यवंशी राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी थी। शिवजी के वरदान पाकर वह लोगों को सताने लगी। लोगों ने ये बात जाकर राज रघु को बताई। तब राजा रघु ने महर्षि वशिष्ठ से राक्षसी को मारने का उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल या हुडदंग उसकी मृत्यु का कारण बन सकता है। ये बात जाकर सभी बच्चे फाल्गुन पूर्णिमा पर सभी बच्चे एकत्रित होकर नाचने-गाने और तालियां बजाने लगे। बच्चों द्वारा ये सब करने से ढुण्ढा राक्षसी का अंत हो गया। यह दिन ही होली के नाम से लोकप्रिय हुआ।

भगवान श्रीकृष्ण ने किया था पूतना वध
भगवान विष्णु ने द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था। उस समय कंस मथुरा का राजा था और वह बालक कृष्ण को मारना चाहता था। इसके लिए उसने पूजना नाम की एक राक्षसी को गोकुल भेजा। पूतना ने अपने स्तनों पर विष लगाकर बालक कृष्ण को मारने का प्रयास किया। लेकिन बालक कृष्ण ने खेल ही खेल में पूतना का वध कर दिया। मान्यता के अनुसार, इस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि थी। कृष्ण द्वारा पूतना वध की खुशी में गोकुल में त्योहार मनाया गया, जिसे आज होली कहते हैं।

शिव ने किया था कामदेव को भस्म
होली से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, पौराणिक काल में तारकासुर नाम का एक महापराक्रमी राक्षस था। उसकी मृत्यु सिर्फ महादेव के पुत्र के हाथों ही संभव थी। उस समय भगवान शिव तपस्या में लीन थे। सभी देवताओं ने मिलकर एक उपाय बनाया जिसमें उन्होंने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने को कहा। कामदेव ने ऐसा कर तो दिया, लेकिन शिवजी के क्रोध की अग्नि से वह भस्म हो गया। तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से प्रार्थना की तो शिवजी कामदेव को अगले जन्म में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने की खुशी में देवताओं ने रंगों से उत्सव मनाया। यही उत्सव होली कहलाया।


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