गुरु द्रोणाचार्य को अंगूठा काटकर देने के बाद एकलव्य का क्या हुआ...?

Mahabharat Facts: महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य को अंगूठ काटकर देने वाले एकलव्य के बारे में तो सभी जानते हैं। लेकिन अंगूठा देने के बाद उसका क्या हुआ, इसके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है।

 

Manish Meharele | Published : Oct 3, 2024 8:25 AM IST

Interesting things related to Eklavya: महाभारत में कुछ योद्धा ऐसे भी हैं, जिनके बारे में बहुत कम बताया गया है। ऐसा ही एक पात्र है एकलव्य। निम्न जाति के होने के कारण गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लिया था। आज भी शिष्य के रूप में सबसे पहले एकलव्य को ही याद किया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि अंगूठा देने के बाद एकलव्य का क्या हुआ। आगे जानिए एकलव्य से जुड़ी खास बातें…

कौन था एकलव्य?
महाभारत के अनुसार, एकलव्य निषादों के राजा हिरण्य धनु का पुत्र था, उसका मूल नाम अभिद्युम्न था। एकलव्य क्षत्रियों की तरह धनुष-बाण चलाना सीखना चाहता था। इसके लिए उसके पिता उसे लेकर गुरु द्रोणाचार्य के पास गए, लेकिन निम्न जाति का होने के कारण गुरु द्रोणाचार्य ने उसे धनुर्विद्या सीखाने से इंकार कर दिया। ऐसा होने पर एकलव्य छिप-छिपकर गुरु द्रोणाचार्य को क्षत्रियों को शस्त्र विद्या देते हुए देखने लगा और अकेले में उसका अभ्यास भी करने लगा।

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जब एकलव्य ने कुत्ते को मारे बाण
एक बार जब गुरु द्रोण अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक कुत्ते के मुख में बहुत सारे बाण लगे हुए हैं। ऐसा काम कोई बड़ा धनुर्धर ही कर सकता है। ऐसा विचारकर गुरु द्रोण कुत्ते पर बाण चलाने वाले को ढूंढने लगे। वन में जाकर उन्होंने देखा कि एक युवक उनकी प्रतिमा के सामने बाण चलाने का अभ्यास कर रहा है।

एकलव्य से अंगूठा ही क्यों मांगा गुरु द्रोणाचार्य ने?
जब गुरु द्रोणाचार्य ने उस बाण चलाने वाले युवक का परिचय पूछा तो उन्होंने अपना नाम एकलव्य बताया और उन्हें पूरी बात सच-सच बता दी। गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन को पहले ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने के वरदान दे चुके थे। एकलव्य की धनुर्विद्या देखकर द्रोणाचार्य समझ गए कि वह भी अर्जुन के समान ही धनुर्धर है। इसलिए उन्होंने एकलव्य से उनका अंगूठा गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लिया।

किसकी सेना में शामिल हुआ एकलव्य?
अंगूठा कटने के बाद भी एकलव्य अंगुलियों से तीर चलाने का अभ्यास करने लगा। इसमें भी पूरी तरह का पारंगत हो गया। युवा होने पर एकलव्य मगध के राजा जरासंध की सेना में शामिल हो गया। जरासंध भगवान श्रीकृष्ण को दुश्मन समझता था। जरासंध ने कईं बार मथुरा पर हमला किया। इस हमले में एकलव्य भी उनके साथ था। एकलव्य ने भी द्वारिका की सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया।

कैसे हुई एकलव्य की मृत्यु?
एक बार जब जरासंध ने मथुरा पर हमला किया तो उस समय एकलव्य ने यादव सेना के कईं बड़े योद्धाओं को मार दिया। एकलव्य के पराक्रम को देखकर श्रीकृष्ण को स्वयं उससे युद्ध करने आना पड़ा। श्रीकृष्ण और एकलव्य के बीच युद्ध हुआ, जिसमें एकलव्य मारा गया। एकलव्य के बाद उसका बेटा केतुमान निषाधों का राजा बना। महाभारत युद्ध में केतुमान ने कौरवों का पक्ष लेते हुए युद्ध किया और भीम के हाथों मारा गया।


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इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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