सार

Interesting facts about Mahabharata: महाभारत में कईं महान योद्धाओं के बारे में बताया हैं, उन्हें में से एक थे गुरु द्रोणाचार्य। इन्होंने ही पांडवों और कौरवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी। गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की कथा बहुत ही विचित्र है।

 

Interesting facts about Dronacharya: महाभारत ग्रंथ में एक से बढ़कर एक वीर योद्धाओं के बारे में बताया गया है। ऐसे ही एक महान योद्धा थे गुरु द्रोणाचार्य। इन्होंने ही भीष्म पितामाह के कहने पर कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी थी। युद्ध में इन्होंने कौरवों का साथ दिया और ये सेनापति भी रहे। पांडवों ने छल से इनका वध किया था। इनके जन्म की कथा बहुत ही रोचक है। आगे जानिए गुरु द्रोणाचार्य से जुड़ी खास बातें…

कैसे हुआ गुरु द्रोणाचार्य का जन्म?
महाभारत के अनुसार, द्वापर युग में महर्षि भरद्वाज नाम के एक महान तपस्वी ऋषि थे। एक बार वे गंगा स्नान कर रहे थे तभी उन्होंने वहां घृताची नामक अप्सरा को स्नान करते हुए देखा तो उनका वीर्यपात हो गया। ऋषि भारद्वाज ने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में इकट्ठा कर लिया। कहते हैं कि उसी बर्तन से एक बालक का जन्म हुआ। द्रोण नाम के बर्तन से पैदा होने के कारण उस बालक का नाम द्रोणाचार्य हुआ।

परशुराम से प्राप्त की शिक्षा
द्रोणाचार्य जब युवा हुए तो अपने पिता के कहने पर ये भगवान परशुराम के पास शस्त्र विद्या सीखने के लिए गए। गुरु परशुराम ने उन्होंने न सिर्फ शस्त्रों का ज्ञान दिया बल्कि कईं दिव्यास्त्र भी दिए। समय आने पर इनका विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ। अष्ट चिरंजीवियों में से एक अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के ही पुत्र हैं। गुरु द्रोणाचार्य को शस्त्र से पराजित करना किसी के बस में नहीं था।

पुत्र को देना चाहते थे अधिक ज्ञान
कौरव और पांडवों के साथ गुरु द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी शिक्षा देते थे। वे चाहते थे कि उनका पुत्र भी उन्हीं के समान महायोद्धा बने। उन्होंने सभी शिष्यों को पानी के मटके दिए हुए थे। जो छात्र जितनी जल्दी वो मटका भरकर ले आता था, उसे अधिक ज्ञान मिलता था। द्रोणाचार्य ने अश्वथामा को अन्य शिष्यों के मुकाबले छोटा घड़ा दिया था। ये बात अर्जुन समझ गए थे। इसलिए वे जल्दी से मटका भरकर गुरु के पास पहुंच जाते। इस कारण अर्जुन अश्वत्थामा से किसी मामले में कम नहींथे।

छल से किया गया द्रोणाचार्य क वध?
महाभारत युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों का साथ दिया था। भीष्म पितामह के बाद उन्हें कौरवों का सेनापति बनाया गया। गुरु द्रोणाचार्य बनाए गए चक्रव्यूह में फंसकर ही अभिमन्यु की मृत्यु हुई थी। गुरु द्रोणाचार्य का वध करने के लिए पहले उन्हें इस बात का विश्वास दिलाया गया कि उनके पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु हो गई है। इस बात को सच मानकर गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शस्त्र त्याग दिए। उसी समय धृष्द्युम्न ने गुरु द्रोणाचार्य का वध कर दिया।


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