khatu shyam: किस एकादशी पर खाटू में प्रकट हुआ था बाबा श्याम का मस्तक, जानें क्या है ये मान्यता?

khatu shyam: इन दिनों राजस्थान (Rajasthan) के सीकर (Sikar) जिले में स्थिति भगवान खाटू श्याम के मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। यहां आयोजित लक्खी मेले में रोजाना लाखों भक्त बाबा श्याम के दर्शन कर रहे हैं। ये मेला 4 मार्च को समाप्त हो जाएगा।

 

Manish Meharele | Published : Mar 3, 2023 3:36 AM IST

उज्जैन. वैसे तो हमारे देश में बाबा श्याम (khatu shyam) के अनेक मंदिर हैं लेकिन मुख्य मंदिर राजस्थान (Rajasthan) के सीकर (Sikar) जिले में खाटू नामक स्थान पर है। खाटू में स्थिति होने के कारण ही इस मंदिर को खाटूश्याम (khatu shyam) के नाम से जाना जाता है। यहां हर साल फाल्गुन मास में विशाल धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे लक्खी मेला कहते हैं। इस बार ये मेला 22 फरवरी से शुरू हो चुका है, जो 4 मार्च तक रहेगा। इस दौरान आने वाले आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi 2023) पर यहां खास आयोजन किए जाते हैं। आगे जानिए खास बातें…

आमलकी एकादशी क्यों है खास?
खाटूश्याम मंदिर में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। इस मौके पर यहां विशेष पूजा, आरती व उत्सव का आयोजन होता है। इसके पीछे मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान श्याम का मस्तक यहां स्थित श्याम कुंड में प्रकट हुआ था। यानी आमलकी एकादशी का पर्व यहां भगवान श्याम के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस आयोजन में हजारों भक्त भाग लेते हैं।

जानें क्या है श्याम कुंड की मान्यता?
खाटू श्याम मंदिर में ही एक कुंड है, जिसे श्याम कुंड कहा जाता है। फाल्गुन मास में लगने वाले लक्खी मेले के दौरान इस कुंड में डुबकी लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे आमलकी कहते हैं, के दिन यहां भगवान श्याम का शीश पहली बार प्रकट हुआ था। ऐसी मान्यता है कि श्याम कुंड में स्नान करने से भक्तों की सेहत ठीक रहती है और कई तरह की परेशानियां अपने आप ही दूर हो जाती हैं।

जानें कौन हैं भगवान श्याम?
- महाभारत के अनुसार, महाबलशाली घटोत्कच का विवाह मोरबी नाम की एक कन्या से हुआ था। इन दोनों का पुत्र था बर्बरीक, जो अत्यंत वीर था। उसके पास 3 ऐसे बाण थे, जिससे वो किसी भी युद्ध को पलक झपकते ही जीत सकता था।
- बर्बरीक का प्रण था कि वो हमेशा दुर्बलों की सहायता करेगा। जब बर्बरीक महाभारत युद्ध में भाग लेने आया तो उस समय कौरव दुर्बल अवस्था में थे। भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि अगर ये कौरवों से जा मिला तो पांडवों की हार निश्चित है।
- ये सोचकर श्रीकृष्ण ने ब्राह्णण का रूप बदलकर बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ये अपना मस्तक काटकर उन्हें हंसते हुए दे दिया। बर्बरीक की दानवीरता देखकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हें लोग मेरे नाम ’श्याम’ से पूजेंगे।
- यही बर्बरीक आज बाबा श्याम के नाम से पूजे जाते हैं। खाटू में इनका मुख्य मंदिर है, जिसे खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है। आज भी बाबा श्याम के सिर्फ मस्तक की ही पूजा करने की परंपरा है।


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