कौन था महाभारत का ‘दूसरा अर्जुन', जिसने कौरव सेना में मचा दिया था भूचाल?

who was Satyaki: महाभारत में सात्यकि नाम के एक पराक्रमी योद्धा का वर्णन मिलता है। ये यादव वंशी और भगवान श्रीकृष्ण का परम भक्त था। युद्ध में इसने पांडवों का साथ दिया था। इसके पराक्रम को देखते हुए दूसरा अर्जुन भी कहा गया है।

Manish Meharele | Published : Sep 28, 2024 7:28 AM IST / Updated: Sep 28 2024, 12:59 PM IST

Interesting facts about Mahabharata: महाभारत की कथा जितनी रोचक है उतनी ही रहस्यमयी भी है। इसमें अनेक रहस्यमयी पात्र हैं जिनके बारे में कम ही लोगों को पता है। ऐसे ही एक पात्र हैं सात्यकि। महाभारत में इन्हें भगवान श्रीकृष्ण का मित्र और सारथी बताया गया है। अर्जुन ने इन्हें अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी। महाभारत युद्ध में इनके पराक्रम को देखकर सभी आश्चर्यचकित हो गए थे। महर्षि वेदव्यास ने इन्हें कईं स्थानों पर दूसरा अर्जुन भी कहा है। जानें सात्यकि से जुड़ी रोचक बातें…

कौन थे सात्यकि?
महाभारत के अनुसार, सात्यकि यादव कुल के एक राजकुमार थे, जो भगवान श्रीकृष्ण के मित्र भी थे और सारथि भी। सात्यकि के और भी कईं नाम थे जैसे- दारुक, युयुधान और शैनेय। इनके पिता का नाम सत्यक था, जिसके कारण इनका सात्यकि नाम अधिक प्रचलित है। इन्होंने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। सात्यकि उन कुछ लोगों में शामिल थे, जो महाभारत युद्ध के बाद जीवित बचे थे।

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क्यों कहा गया दूसरा अर्जुन?
सात्यकि को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान अर्जुन ने ही दिया था, इसलिए वे युद्ध कौशल में अर्जुन के समान ही थे। युद्ध के दौरान उन्होंने कईं बार ऐसा पराक्रम दिखाया कि कौरव सेना भ्रम में पड़ गई कि ये सात्यकि हैं या स्वयं अर्जुन युद्ध कर रहे हैं। सात्यकि ने कौरव सेना के बड़े-बड़े योद्धाओं को पराजित किया था, जिनमें त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरि और कर्णपुत्र प्रसन शामिल थे।

श्रीकृष्ण के साथ गए थे हस्तिनापुर
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले जब भगवान कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर कौरवों को समझाने के लिए गए थे तो उस समय सात्यकि ने ही उनका रथ चलाया था। जब दुर्योधन ने श्रीकृष्ण का शांति संदेश ठुकरा दिया और उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया, उस समय श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया था। श्रीकृष्ण का ये विराट रूप भीष्ण, विदुर और द्रोणाचार्य के साथ सात्यकि ही देख पाए थे।

युधिष्ठिर की रक्षा की
अभिमन्यु की मृत्यु के बाद जब अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने की प्रतिज्ञ की तो उस समय श्रीकृष्ण ने सात्यकि को ही युधिष्ठिर का रक्षक बनाया था ताकि कौरव सेना का कोई भी योद्धा उन तक नहीं पहुंच सके। इस दौरान सात्यकि ने गुरु द्रोण और कर्ण आदि से भी युद्ध किया लेकिन किसी को भी युधिष्ठिर के पास नहीं आने दिया।

कैसे हुई सात्यकि की मृत्यु?
महाभारत युद्ध समाप्त होने के सालों बाद जब गांधारी के श्राप के कारण यदुवंशियों के अंत का समय आया था वे सभी प्रभास क्षेत्र में इकट्ठा हुए। वहां छोटी सी बात पर यादवों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में पहले सात्यकि ने कृतवर्मा का वध कर दिया, बाद में उसके पुत्रों ने सात्यकि को मार डाला।


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