Lathmar Holi 2023 Date: होली हिंदुओं का एकमात्र त्योहार है, जिसकी धूम कुछ दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है। व्रज मंडल के आस-पास के क्षेत्रों में होली की रौनक देखती ही बनती है। इस मौके पर लड्डू होली, लट्ठमार होली आदि का आयोजन भी किया जाता है।
उज्जैन. हमारे देश में हर त्योहार अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। होली भी इन त्योहारों में से एक है। वैसे तो होली पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन बरसाने लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। (Lathmar Holi 2023 Date) इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। इस बार लट्ठमार होली 28 मार्च, मंगलवार को देखी जाएगी। लट्ठमार होली क्यों खेली जाती है और इस होली से जुड़ी क्या-क्या मान्यताएं हैं, आगे जानिए…
जानें क्या है लट्ठमार होली? (Know what is Lathmar Holi?)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण युवक थे और नंद गांव में रहते थे, उस समय उन्हें बरसाने में रहने वाली राधा से प्रेम हो गया। होली के पहले श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ बरसाने में होली खेलने गए तो राधा सहित अन्य गोपियों ने उन्हें हंसी-खेल में लाठियों से पीटना शुरू किया। इधर श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ राधा और अन्य गोपियों के रंग लगाते तो कभी उनकी लाठियों के वार से बचते। धीरे-धीरे ये एक परंपरा बन गई और आज भी चली आ रही है। इस परंपरा में नंदगांव के जो पुरुष भाग लेते हैं जिन्हें हुरियारे कहते हैं और बरसाने की जो महिलाएं भाग लेती हैं जिन्हें हुरियारने कहते हैं।
जानें इस परंपरा से जुड़ी खास बातें?
परंपरा के अनुसार, होली से पहले बरसाने की महिलाएं नंदगाव जाकर वहां के गोस्वामी समाज को बरसाने आकर होली खेलने आने का निमंत्रण देती हैं। तय समय पर नंदगांव के हुरियारे अपने हाथों में रंग व ढाल लेकर होली खेलने के लिए बरसाना गांव पहुंच जाते हैं। यहां वे गोपियों को रंग तो लगाते ही हैं, साथ ही उनकी लाठियों के वार से बचते हुए श्रीजी मंदिर के ऊपर ध्वजा लगाना होता है। ये मंदिर राधारानी का है। यहां ध्वज लगाकर नंदगाव के हुरियारे अपने घर लौट जाते हैं।
अगले दिन नंदगांव में होता ये आयोजन
लट्ठमार होली अपने आप में एक खास उत्सव है। इस उत्सव के दौरान महिलाएं और पुरुष खास तरह के गीत गाते और नाचते हैं। इन गीतों को रसिया कहते हैं। बरसाना में लट्ठमार होली खेलने के बाद अगले दिन (इस बार 1 मार्च, बुधवार) नंदगांव में भी इसी तरह का आयोजन होता है। इस उत्सव में बरसाना गांव के पुरुष और नंदगाव की महिलाएं भाग लेती हैं। विदेश के लोग भी इस अद्भुत उत्सव को देखने की इच्छा से यहां आते हैं और राधा-कृष्ण के प्रेम में डूब जाते हैं।
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