Maha Kumbh 2025: जब कोई आम आदमी मरता है तो उसका क्रियाकर्म तेरह दिनों में हो जाता है, लेकिन संन्यासियों में सोलसी यानी सोलहवें दिन सारा क्रियाकर्म होता है। शैव संन्यासियों की परंपराएं आम समाज से बहुत अलग और अनोखी होती हैं।
Interesting facts about sadhus: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में साधु-संतों की एक अलग ही दुनिया देखने को मिल रही है। साधु-संतों की अपनी अलग परंपराएं होती हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि शैव अखाड़ों में जब किसी साधु-संत की मृत्यु हो जाती है तो उसका क्रियाक्रम कैसे व कितने दिनों के बाद करते हैं। आगे जानिए क्या होता है शैव अखाड़ों से जुड़े साधु-संत की मृत्यु के बाद…
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शैव अखाड़ों में जब किसी संन्यासी की मृत्यु होती है तो उसको जलाया नहीं जाता, परंपरागत तरीके से समाधि दी जाती है यानी भूमि में उसके शव को दफनाया जाता है। इस दौरान मृतक साधु की अवस्था बैठी हुई होती है न कि लेटी हुई। समाधि देने से पहले शव को पालकी में बैठाकर यात्रा निकाली जाती है, जिसे डोल कहते हैं।
आमतौर पर जब कोई व्यक्ति मरता है तो उसके सभी उत्तर कार्य 13 दिनों में कर लिए जाते हैं लेकिन शैव अखाड़ों में ऐसा नहीं होता। इनमें मृतक साधु के उत्तर कार्य 16 दिनों तक चलते हैं। 16वें दिन जो मुख्य कार्यक्रम होता है उसे सोलसी कहते हैं। संन्यासियों में समाधि से लेकर सोलसी तक के कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए एक अखाड़ा अलग है, जिसे गोदड़ अखाड़ा कहते हैं। पूरे देश में कहीं भी किसी संन्यासी की मृत्यु हो, उसके 16 दिन तक के कार्यक्रम में इसी अखाड़े के लोगों का रहना आवश्यक है।
गोदड़ अखाड़े के साधु-संत मृतक साधु की समाधि पर 16 दिनों तक रोज भोग लगाते हैं और अन्य कार्यक्रम करते हैं। 16 दिन के बाद अन्य सभी रीति-रिवाज मृतक संत के शिष्य पूरे करते हैं। 16वें दिन सोलसी कार्यक्रम के बाद संतों का भंडारा आयोजित होता है। इसके बाद ही मृतक साधु के उत्तर कार्य पूरे होते हैं।
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