प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में साधु-संतों के साथ अघोरी भी आए हैं। अघोरी आम साधु-संतों से थोड़ा अलग रहते हैं। ये तामसिक पूजा करते हैं, जिसमें शराब, मांस आदि का उपयोग होता है।
अघोरी साधक तीन तरह की साधनाएं करते हैं- शव, श्मशान और शिव। इनमें से शव और श्मशान साधना में नरमुंड यानी मानव खोपड़ी का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है।
सभी के मन में ये सवाल उठता है कि तंत्र साधना के लिए अघोरी मानव खोपड़ी लाते कहां है? क्योंकि इसका मिलना बहुत ही कठिन होता है। मानव खोपड़ी इतनी आसानी से नहीं मिलती।
ऐसा कहते हैं कि जब कोई अघोरी मरता है तो उसके शिष्य उनकी सिर को धड़ के काटकर अलग कर देते हैं। गुरु के मुंड को सबसे पहले मां अघोर काली को अर्पित किया जाता है।
मां काली को अर्पित करने के बाद अघोरी अमावस्या की रात गुरु के नरमुंड को सिद्ध करते हैं। इसके बाद इस नरमुंड का उपयोग अघोरी अपनी साधना के लिए करते हैं।
अघोरियों के पास कुछ खोपड़ियां उन साधकों की भी होती हैं, जो जीते जी अपनी देह त्यागने के बाद अपनी खोपड़ी अघोरियों को अर्पित कर देते हैं। अघोरी इन खोपड़ियों को भी सिद्ध करते हैं।