Mahashivratri 2023: रुद्रप्रयाग के इस मंदिर में हुआ था शिव-पार्वती का विवाह, आज भी मिलते हैं प्रमाण

Mahashivratri 2023: इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि ये पर्व भगवान शिव-पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उत्तराखंड में आज भी वो जगह है जहां शिवजी का विवाह हुआ था।

 

Manish Meharele | Published : Feb 17, 2023 11:26 AM IST

उज्जैन. इस बार 18 फरवरी को महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) का पर्व बड़े ही धूम-धाम से पूरे देश में मनाया जाएगा। ये पर्व क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर कई बातें प्रचलित हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। वहीं एक मान्यता ये भी है कि इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। मान्यता के अनुसार, जहां शिव पार्वती का विवाह हुआ था वो स्थान आज भी उत्तराखंड (Uttarakhand) के रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) में स्थित है। आगे जानिए उस स्थान के बारे में अन्य रोचक बातें…

यहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस स्थान पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, वो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित है, जिसे त्रियुगीनारायण मंदिर (Triyuginarayan Temple) कहते हैं। वैसे तो ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन शिव-पार्वती विवाह से जुड़ा होने के कारण शिव भक्त भी यहां दर्शन करने आते हैं। ऐसा कहते हैं कि यहां जिन लोगों का विवाह होता है, उनका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशहाल रहता है। और भी कई बातें इस मंदिर को खास बनाती हैं।

आज भी जल रही है विवाह वेदी की अग्नि
इस मंदिर के सामने वेदी पर अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है। मान्यता है कि इस हवन कुंड की अग्नि के सामने ही शिव-पार्वती विवाह बंधन में बंधे थे। इस परंपरा के चलते इस मंदिर को अखंड धूनी मंदिर भी कहा जाता है। लोग अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली के इस हवनकुंड की राख को अपने साथ ले जाते हैं और घर में रखकर पूजा करते हैं। मंदिर के सामने एक शिला यानी पत्थर है, जिसे शिव-पार्वती विवाह का मुख्य स्थान माना जाता है।

ऐसा है मंदिर का स्वरूप
त्रियुगीनारायण मंदिर को देखकर मन में भक्ति उमड़ आती है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की 2 फीट की प्रतिमा स्थापित है। साथ ही देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के आस पास 4 कुंड हैं, जिन्हें रुद्रकुंड, विष्णुकुंड, ब्रह्मकुंड और सरस्वती कुंड का जाता है, ये सभी कुंड यहां से निकलने वाली सरस्वती गंगा नाम की धारा से सदैव भरे रहते हैं।

कैसे पहुंचें?
- त्रियुगी नारायाण मंदिर सोनप्रयाग से 12 किमी दूर है। सोनप्रयाग पहुंचकर आप सड़क मार्ग से आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
- रेल यात्री हरिद्वार के लिए ट्रेन में सवार हो सकते हैं, जो त्रियुगीनारायण से लगभग 275 किमी दूर स्थित है। वहां से यहां पहुंचने के कई साधन हैं।
- रुद्रप्रयाग का सबसे नजदीक हवाई अड्डा देहरादून है। यहां से आप टैक्सी या अपने निजी वाहन से आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।


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