Mahashivratri 2023: बाबा वैद्यनाथ के मंदिर से उतारा गया पंचशूल, पूजा के बाद फिर होगा स्थापित, जानें क्या है ये परंपरा?

Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि के एक दिन पहले यानी 17 फरवरी, शुक्रवार को बाबा वैद्यनाथ के मंदिर से पंचशूल उतारे गए और अन्य परंपरा पूरी की गई। इस दृश्य को देखने के लिए हजारों भक्त यहां मौजूद थे।

 

उज्जैन. इस बार महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) का पर्व 18 फरवरी, शनिवार को मनाया जाएगा। इस मौके पर देश के प्रमुख शिव मंदिरों में अलग-अलग परंपराओं का पालन किया जाता है। इन्हीं परंपराओं के अंतर्गत झारखंड (Jharkhand) के देवघर (Deoghar) में स्थित ज्योतिर्लिंग बाबा वैद्यनाथ (Vaidyanath Jyotirling) के मंदिर में स्थापित पंचशूल 17 फरवरी, शुक्रवार को उतारे गए। साथ ही बाबा और देवी पार्वती के मंदिर के बीच का गंठबंधन भी खोला गया। दोनों मंदिरों के पंचशूल उतार कर उनका मिलन करवाया गया। इस घटना को देखने के लिए हजारों लोग यहां उपस्थित थे। आगे जानिए क्या है ये परंपरा…

सिर्फ इसी मंदिर में है पंचशूल चढ़ाने की परंपरा
आमतौर पर किसी भी शिव मंदिर में त्रिशूल स्थापित किया जाता है लेकिन देश भर में एकमात्र वैद्यनाथ धाम ही ऐसा मंदिर है जिसके ऊपर त्रिशूल की जगह पंचशू स्थापित है। मंदिर परिसर में अन्य जितने भी मंदिर हैं जैसे लक्ष्मी-नारायण, गणेश मंदिर आदि। इन सभी में भी पंचशूल स्थापित है। मान्यता है कि इस पंचशूल के चलते इस जगह पर कोई विपदा नहीं आती और ये स्थान सुरक्षित बना रहता है।

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महाशिवरात्रि पर उतारे जाते हैं पंचशूल
वैद्यनाथ धाम में महाशिवरात्रि का पर्व बहुत ही उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के एक दिन पहले विधि-विधान से सभी मंदिरों को पंचशूल उतारे जाते हैं और इनकी विधिवत पूजा की जाती है। बाबा वैद्यानाथ और देवी पार्वती के मंदिरों पर स्थापित पंचशूलों को एक-दूसरे से स्पर्श करवाय जाता है जो शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक है। बाद में इन्हें पंचशूलों को पुन: मंदिर के शिखरों पर स्थापित कर दिया जाता है।

एक मान्यता ये भी है
धर्म ग्रंथों के अनुसार, बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं राक्षसराज रावण ने की है। त्रेता युग में रावण की लंका पुरी के प्रवेश द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में पंचशूल स्थापित किया गया था, जिसे भेदना किसी को नहीं आता था। उस समय विभीषण ने ये राज की बातें श्रीराम को बता दी और उन्होंने पंचशूल को भेदकर लंका में प्रवेश करने में सफलता प्राप्त की। मान्यता है कि पंचशूल के कारण मंदिर पर आज तक कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई है।


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