
Traditions of Makar Sankranti: हर साल जब सूर्य धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। ये पर्व हर साल 14 जनवरी को ही आता है। इस त्योहार से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं, जिनके पीछे साइंस कनेक्शन है यानी इन परंपराओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण छिपा हुआ है। ये परंपराएं इस त्योहार को और भी खास बनाती हैं। जानें इन परंपराओं के पीछे छिपे साइंस कनेक्शन को…
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मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ से बने लड्डू, रेवड़ी और गजक खाने की परंपरा है। इसके पीछे कारण है कि इस समय शीत ऋतु अपने चरम पर होती है। इस मौसम में शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए तिल-गुड़ से बनी चीजें विशेष रूप से खाई जाती है। तिल में तेल होता है और गुड़ की तासीर गर्म होती है। इन दोनों से मिलकर बने व्यंजन सर्दी के मौसम में हमें पर्याप्त ऊर्जा देते हैं।
मकर संक्रांति के मौके पर उत्तर प्रदेश आदि स्थानों पर खिचड़ी विशेष रूप से खाई जाती है और इसका दान भी किया जाता है। खिचड़ी में चावल के साथ-साथ सब्जियां और दालों का उपयोग किय जाता है। इसके ऊपर शुद्ध ही डालकर खाया जाता है। इन सभी चीजों को मिलाकर बनाई गई खिचड़ी शीत ऋतु में शरीर को जरूरी ऊर्जा प्रदान करती है।
मकर संक्रांति पर देश के अधिकांश हिस्सों में पतंग उड़ाने की परंपरा है। पतंग उड़ाने के लिए आपको खुली जगह चाहिए होती है जहां पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी मिलती हो जैसे छत। पतंग उड़ाते समय हम अधिक समय तक सूर्य की किरणों के संपर्क में रहते हैं, जिससे हमें विटामिन डी मिलता है। सूर्य की ये किरणें शीत ऋतु में किसी दवाई की तरह काम करती है और हमें स्वस्थ रखती है।
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