Mother's Day 2023: ये हैं धर्म ग्रंथों की 8 आदर्श माताएं, किसी ने जंगल तो किसी ने आश्रम में पाला अपनी संतानों को

Mother's Day 2023: हर साल मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। इस बार 14 मई को को मदर्स डे मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में माता के लिए कोई दिन निश्चित नहीं है क्योंकि माता के बिना तो कोई दिन होता ही नहीं है।

 

Manish Meharele | Published : May 9, 2023 8:39 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म ग्रंथों में माता को भगवान से भी अधिक पूजनीय बताया गया है। हमारे पुराणों में कई ऐसी माताओं के बारे में वर्णन है, जिन्होंने अभावों में रहकर भी अपनी संतान का पालन इस तरह से किया कि वे समाज में एक आदर्श के रूप में देखे जाते हैं। मदर्स डे (14 मई, रविवार) के मौके पर हम आपको (Mother's Day 2023) धर्म ग्रंथों की कुछ ऐसी ही माताओं के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं…

माता कौशल्या ने श्रीराम को बनाया मर्यादा पुरुषोत्तम
भगवान श्रीराम की माता कौशल्या के बारे में कौन नहीं जानता, ये रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक थीं। उन्होंने अपने पुत्र श्रीराम का पालन इस तरह से किया कि आज भी संसार में उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता है। माता कौशल्या का अपने पुत्र राम के प्रति असीम स्नेह था। जब माता कौशल्या को पता चला कि उनके पुत्र को 14 वर्ष के वनवास पर भेजा जा रहा है तो पहले तो वे बहुत दुखी हुईं, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि पिता की आज्ञा का पालन करना ही पुत्र का धर्म होता है। पुत्र से बिछड़ने के बाद भी उन्होंने धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा।

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देवी सीता ने वन में रहकर भी को दिखाया धर्म का मार्ग
रामायण में माता कौशल्या के बाद यदि किसी माता का नाम आता है तो वे भगवान श्रीराम की पत्नी सीता। देव सीता ने हर रूप में मर्यादा का पालन किया चाहे वो बहू के रूप में हो, पत्नी के रूप में या माता के रूप में। जब देवी सीता का श्रीराम ने त्याग कर दिया तो उस समय उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहत हुए लव-कुश को जन्म दिया। जब ये दोनों बड़े हुए तो उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। देवी सीता ने वन में रहते हुए भी अपने पुत्रों को हर वो शिक्षा प्रदान की जो राजकुमारों को मिलनी चाहिए थी।

माता यशोदा ने श्रीकृष्ण पर लुटाया संपूर्ण स्नेह
भगवान श्रीकृष्ण को जन्म भले ही देवकी ने दिया है, लेकिन उनकी माता के रूप में सबसे पहले यशोदा को ही याद किया जाता है। यशोदा ने अपना संपूर्ण स्नेह श्रीकृष्ण पर लूटा दिया। यशोदा के लिए कहा जाता है कि जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है। यशोदा ने बलराम के पालन पोषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे।

कुंती ने सभी पुत्रों को एक समान शिक्षा दी
पांडवों की माता कुंती महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थीं। युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन कुंती के पुत्र थे, जबकि नकुल व सहदेव राजा पांडु की दूसरी पत्नी माद्री की संतान थे। कुंती ने कभी भी अपने पुत्रों और माद्री के पुत्रों में अंतर नहीं किया। राजा पांडु की मृत्यु के बाद अभावों के रहते हुए भी कुंती ने अपने पुत्रों को श्रेष्ठ शिक्षा दी व धर्म पथ पर चलते रहने के लिए प्रेरित किया।

शकुंतला ने अपने पुत्र को बनाया चक्रवर्ती सम्राट
शकुंतला ब्रह्मर्षि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री थीं। इनका विवाह चक्रवर्ती राजा दुष्यंत से हुआ था। शकुंतला के पुत्र का नाम भरत था। भरत के ही नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। भरत का बचपन अपनी माता के साथ जंगल में बीता। राजा दुष्यंत के बाद भरत राजा बने। भरत ने अनेक देशों को जीत कर उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। इसलिए उन्हें चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि दी गई।

माता देवहुति ने पुत्र से ही पाया ज्ञान
धर्म ग्रंथों में जब भी माताओं का वर्णन आता है तो इसमें कपिल मुनि की माता देवहुति का नाम भी जरूर आता है। भगवान विष्णु के पांचवे अवतार कपिल मुनि इन्हीं के पुत्र थे। कपिल मुनि ने सबसे पहले अपनी माता देवहूति को ही सांख्य दर्शन का उपदेश दिया था। यही ज्ञान सांख्य दर्शन कहलाया। सांख्य दर्शन षड्दर्शन में सबसे प्राचीन है। इसका उल्लेख प्रत्यक्ष तौर पर भगवद्गीता में भी है।

कयाधु ने पुत्र प्रह्लाद को बनाया परम भक्त
भक्त प्रह्लाद की माता का नाम कयाधु था। ये भगवान विष्णु के परम भक्त थी। जब प्रह्लाद गर्भ में था, तब इन्होंने नारद मुनि के मुख से भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन सुना था। माता के गुणों से प्रभावित होकर ही भक्त प्रह्लाद भी भगवान विष्णु की उपासना करने लगे। प्रह्लाद की रक्षा के लिए स्वयं भगवान विष्णु को नरसिंह अवतार लेना पड़ा।

माता सुनीति ने बालक ध्रुव को दिया भक्ति का ज्ञान
बालक ध्रुव के बारे में तो हम सभी सभी जानते हैं। इनके पिता का नाम उत्तानपाद था, उनकी दो पत्नियां थीं सुनीति और सुरुचि। ध्रुव सुनीति के पुत्र थे। एक बार सुरुचि ने बालक ध्रुव को राजा उत्तानपाद की गोद से उतार दिया और ये कहा कि मेरे गर्भ से पैदा होने वाला ही गोद और सिंहासन का अधिकारी है। जब ये बात बालक ध्रुव ने अपनी माता सुनीति को बताई तो मां ने उसे भगवान की भक्ति के माध्यम से ही लोक-परलोक के सुख पाने का रास्ता सूझाया। बालक ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे ध्रुवलोक प्रदान किया।


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