Nirjala Ekadashi 2023 Date: वो कौन-सा व्रत है जो पाण्डु पुत्र भीम के नाम से प्रसिद्ध है, इस बार कब है वो व्रत?

Nirjala Ekadashi 2023 Date: महाभारत में अनेक व्रत-पर्वों के बारे में बताया गया है। इनमें से निर्जला एकादशी भी एक है। इसे साल की सबसे बड़ी एकादशी भी कहा जाता है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई, बुधवार को किया जाएगा।

 

Manish Meharele | Published : May 26, 2023 9:28 AM IST / Updated: May 30 2023, 12:36 PM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों में एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। एक महीने में 2 एकादशी होती है, इस तरह साल में कुल 24 एकादशी (Nirjala Ekadashi 2023 Date) का योग बनता है। इन सभी एकादशी का नाम और महत्व महाभारत में बताया गया है। इनमें से एक एकादशी ऐसी है जिसे साल की सबसे बड़ी एकादशी कहते हैं, ये है निर्जला एकादशी। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में किया जाता है। इस बार ये तिथि 31 मई, बुधवार को है। आगे जानिए इस एकादशी से जुड़ी खास बातें…

साल में सिर्फ यही व्रत करते थे पाण्डु पुत्र भीम
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इस एकादशी का ये नाम इसलिए पड़ा क्योंकि पाण्डु पुत्र भीम साल में सिर्फ यही एकमात्र व्रत करते थे, जिससे उन्हें पूरे साल की एकादशी करने का फल प्राप्त हो जाता था। इससे जुड़ी एक कथा भी काफी प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है…
- महाभारत के अनुसार, युद्ध समाप्त होने के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने, तब एक बार महर्षि वेदव्यास उनसे मिलने पहुंचें। पांडवों ने महर्षि वेदव्यास से व्रतों का महत्व पूछा। महर्षि ने एकादशी व्रत को सबसे प्रमुख बताया।
- महर्षि वेदव्यास ने पांडवों से हर महीने की दोनों एकादशी पर व्रत करने को कहा। सभी पांडव इस बात पर राजी हो गए, लेकिन भीमसेन सोच में पड़ गए। तब महर्षि वेदव्यास ने इसका कारण पूछा।
- भीम ने महर्षि वेदव्यास से कहा कि ‘मेरे पेट में जो अग्नि है, उसे शांत करने के लिए मुझे निरंतर कुछ न कुछ खाना पड़ता है, ऐसी स्थिति में मैं भूखा नहीं रह सकता तो क्या मैं एकादशी व्रत के पुण्य से वंचित रहा जाऊंगा।’
- भीम की बात सुनकर महर्षि वेदव्यास भी सोच में पड़ गए और कुछ देर बाद उन्होंने कहा कि ‘यदि तुम्हारे लिए पूरे साल के एकादशी व्रत करना कठिन है तो तुम सिर्फ ज्येष्ठ मास की एकादशी का व्रत करो, जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं।’
- महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ‘इस एक व्रत के प्रभाव से तुम्हें साल भर की एकादशी का पुण्य फल प्राप्त हो जाएगा।’ इसलिए भीमसेन पूरे साल में एकमात्र यही एक व्रत करते थे, इसलिए इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ गया।

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