
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, अधिक मास 3 साल में एक बार आता है, इसलिए इस महीने की एकादशी बहुत खास मानी गई है। इस बार 12 अगस्त, शनिवार को सावन अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का संयोग बन रहा है। इसे परमा एकादशी कहते हैं। इस व्रत की कथा सुने बिना इसका संपूर्ण फल नहीं मिल पाता। आगे जानिए इस व्रत की कथा…
परमा एकादशी की कथा (Parma Ekadashi Katha)
प्राचीन समय में काम्पिल्य नाम के शहर में सुमेधा नाम का एक धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी भी दिन रात भगवान के भजन में लगी रहती थी और अपने पतिव्रत का पालन करती थी। ये दंपत्ति अत्यंत गरीब थे। भिक्षा न मिलने पर कई बार ब्राह्मण दंपत्ति भूखे ही सो जाते थे।
एक बार ब्राह्मण ने सोचा कि क्यों ना परदेश जाकर कुछ काम करूं, जिससे की ये गरीबी दूर हो सके। ये बात जानकर ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि ‘भाग्य में जो लिखा है, उसे टाला नहीं जा सकता। इसलिए अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है। ब्राह्मण ने पत्नी की बात मान ली।
एक बार कौण्डिन्य ऋषि उन ब्राह्मण के घर आए। दोनों ने उनकी बहुत सेवा की और गरीबी दूर करने का उपाय पूछा। ऋषि ने उन्हें बताया कि ‘अधिक मास में जो परमा एकादशी आती है, उसका व्रत करने से सभी तरह के दुख, पाप और दरिद्रता का नाश हो जाता है।’
’जो मनुष्य परमा एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान से करता है, वह शीघ्र ही धनवान हो जाता है। इस व्रत में रात में सोना नहीं चाहिए और नाच-गाकर भगवान के भजन आदि गाना चाहिए। यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है।’
ऋषि ने ये भी बताया कि ‘इसी व्रत के प्रभाव से राजा हरिशचंद्र को उनका खोया राज-पाठ पुन: प्राप्त हुआ था।’ ऋषि के कहने पर ब्राह्मण दंपत्ति ने परमा एकादशी का व्रत किया, जिससे उनकी गरीबी दूर हो गई और काफी समय तक सुख भोगने के बाद वे दोनों श्रीविष्णु के उत्तम लोक में चले गए।
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