
Pitru Paksha 2025 Beliefs: इस बार श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर से शुरू हो चुका है जो 21 सितंबर तक रहेगा। तिथि क्षय होने के कारण इस बार श्राद्ध पक्ष 16 नहीं बल्कि 15 दिनों का रहेगा। श्राद्ध पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण आदि करते हैं। पिंडदान के लिए जो पिंड बनाए जाते हैं, उसमें चावल, जौ और थोड़ी मात्रा में तिल का उपयोग भी किया जाता है। पिंडदान के लिए इन्हीं चीजों से पिंड क्यों बनाते हैं? इसके पीछे का कारण बहुत कम लोग जानते हैं। असम के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र से जानें इस परंपरा के पीछे की वजह…
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धर्म ग्रंथों में चावल को बहुत ही पवित्र माना गया है। इसलिए हर पूजा में चावल का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। चावल को हविष्य अन्न भी कहते हैं यानी हवन में उपयोग आने वाला अन्न। हवन करते समय जो सामग्री इसमें डाली जाती है, उसमें चावल का उपयोग भी होता है। मान्यता है कि पितरों को भी चावल विशेष रूप से प्रिय है। इसलिए पिंड बनाने में चावल का उपयोग विशेष रूप होता है।
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विद्वानों के अनुसार, चावल न हो तो पिंड बनाने के लिए जौ के आटे का उपयोग किया जाता है। इसके पीछे का कारण है कि जौ को सृष्टि का प्रथम अन्न माना जाता है। साथ ही जौ सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का प्रतीक भी हैं। पवित्र होने के कारण ही जौ के आटे का उपयोग पिंड बनाने में किया जाता है। ये परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है।
पितरों के पिंडदान के लिए जब भी चावल या जौ के आटे से पिंड बनाए जाते हैं तो इसमें काले तिल जरूर मिलाए जाते हैं। ग्रंथों के अनुसार तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है, इसलिए ये अत्यंत पवित्र माने गए हैं। पिंड में काले तिल मिलाने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।