
Rukmini Ashtami 2025 Kab Hai: द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, तब देवी लक्ष्मी ने भी रुक्मिणी के रूप में अवतार लिया। वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण ने 16 हजार 108 रानियां थी, लेकिन उन सभी में रुक्मिणी सबसे प्रमुख थीं। हर साल पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी रुक्मिणी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 12 दिसंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। आगे जानिए रुक्मिणी अष्टमी की पूजा विधि, मुहूर्त और पूरी डिटेल…
ये भी पढ़ें-
Mahakal Bhasma Aarti: नए साल पर कैसे करें महाकाल भस्म आरती की बुकिंग? यहां जानें
सुबह 07:02 से 08:22 तक
सुबह 08:22 से 09:41 तक
दोपहर 11:59 से 12:41 तक (अभिजीत मुहूर्त)
दोपहर 12:20 से 01:39 तक
शाम 04:18 से 05:38 तक
ये भी पढ़ें-
Purnima Dates: साल 2026 में 12 नहीं 13 पूर्णिमा, नोट करें डेट्स
- 12 दिसंबर, शुक्रवार की सुबह स्नान करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें यानी कुछ भी खाए नहीं, किसी पर क्रोध न करें आदि।
- ऊपर बताए किसी एक शुभ मुहूर्त में अपनी पूजा कर सकते हैं। इसके पहले पहले पूजा सामग्री एक स्थान पर लाकर रख लें और पूजा स्थान को गंगाजल से छिड़ककर शुद्ध कर लें।
- मुहूर्त शुरू होने पर लकड़ी की चौकी यानी पटिए पर भगवान श्रीकृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। कुमकुम से तिलक करें और फूलों की माला पहनाएं।
- पास में ही शुद्ध घी का दीपक भी जलाएं। श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी को वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद एक-एक करके अबीर, गुलाल, फूल हल्दी, इत्र, जनेऊ,
पान आदि चीजें चढ़ाते रहें।
- अपनी इच्छा अनुसार भोग लगाएं। इस भोग में तुलसी के पत्ते जरूर डालें। सबसे अंत में भगवान की आरती करें। दिन भर मन ही मन में भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के मंत्रों का जाप करते रहें।
- इच्छा अनुसार एक समय फलाहार कर सकते हैं। रात में सोए नहीं, जागरण और भजन करते हुए रात बिताएं। अगले दिन यानी 13 दिसंबर, शनिवार को पारणा करें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।