Kaal Bhairav Ashtami 2022: इंद्र-ब्रह्म योग में मनाई जाएगी कालभैरव अष्टमी, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, कथा-आरती

Kaal Bhairav Ashtami 2022: हर साल अगहन मास में भगवान कालभैरव की जयंती मनाई जाती है। इसे कालभैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस बार ये पर्व 16 नवंबर, बुधवार को है। इस दिन भैरव मंदिर में विशेष पूजा आदि की जाती है।

Manish Meharele | / Updated: Nov 16 2022, 05:45 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, कालभैरव भगवान शिव के अवतार हैं। अत्यधिक क्रोधित स्वभाव के होने के चलते इन्हें उग्र अवतार भी कहा जाता है। हर साल अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 16 नवंबर, बुधवार को है। इस बार इंद्र और ब्रह्म नाम के शुभ योग बनने के चलते इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए कालभैरव अष्टमी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती व अन्य खास बातें…

पूजा के शुभ मुहूर्त (Kalabhairav Ashtami 2022 Shubh Muhurat)
वैसे तो कालभैरव अष्टमी पर पूजा निशित काल यानी मध्य रात्रि में की जाती है, लेकिन भक्त अपनी सुविधा अनुसार, दिन में भी आगे बताए गए शुभ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं- 
- सुबह 06.44 से 09 .25 तक 
- शाम 04.07 से 05.27 तक 
- शाम 07.07 से रात 10.26 तक 
- रात 11.40 से 12.33 तक (निशित काल मुहूर्त)

भगवान कालभैरव की पूजा विधि (Kalabhairav Ashtami 2022 Puja Vidhi)
- 16 नवंबर, बुधवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा-व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद घर में किसी साफ स्थान को गंगाजल या गौमूत्र से धोकर पवित्र कर लें और वहां लकड़ी की एक चौकी स्थापित करें।
- लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और इसके ऊपर भगवान शिव-पार्वती के साथ कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 
- मूर्ति स्थापना के बाद कुंकुम से तिलक करें और चावल लगाएं। इसके बाद हार पहनाएं और फूल, चंदन, गुलाल, अबीर और रोली आदि चीजें अर्पित करें। 
- चौमुखा दीपक जलाएं और नारियल, मिठाई, पान, मदिरा आदि चीजें चढ़ाएं। अंत में भगवान कालभैरव की आरती करें।

भगवान काल भैरव की आरती (Kalabhairav Arti)
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा। 
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक। 
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी। 
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे। 
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी। 
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत। 
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें। 
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।

कैसे हुई भगवान कालभैरव की उत्पत्ति?
शिवपुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए। उन्हें देखकर ब्रह्मा ने उन्हें अपना पुत्र बताया और अपनी शरण में आने को कहा। ब्रह्मा के मुख से ऐसी बात सुनकर शिवजी को क्रोध आ गया और उसी क्रोध से कालभैरव की उत्पत्ति हुई। कालभैरव ने ब्रह्मदेव का एक सिर काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। काशी जाकर उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली।

ये है भैरव के 8 रूप
ग्रंथों में भगवान कालभैरव के 8 रूप माने गए हैं। इनमें से काल भैरव तीसरे हैं। भैरव से ही अन्य 7 भैरव भी प्रकट हुए। इनके नाम इस प्रकार हैं- 1. रुरु भैरव 2. संहार भैरव 3. काल भैरव 4.. असित भैरव 5. क्रोध भैरव 6. भीषण भैरव 7. महा भैरव 8. खटवांग भैरव।


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