Raksha bandhan 2022: ये मंत्र बोलकर भाई को बांधें राखी, जानें पूरी विधि, मुहूर्त, कथा और सभी खास बातें

Raksha bandhan 2022: इस बार रक्षाबंधन पर्व एक नहीं बल्कि दो दिन (11 व 12 अगस्त) मनाया जाएगा, ऐसा ज्योतिषियों में मतभेद के चलते होगा। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं। ये पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है जो श्रावण पूर्णिमा पर मनाया जाता है।

Manish Meharele | Published : Aug 8, 2022 6:57 AM IST / Updated: Aug 11 2022, 09:16 AM IST

उज्जैन. इस बार रक्षाबंधन पर्व को लेकर बहुत बड़ा कन्फ्यजून है। जिसके चलते कुछ लोग ये त्योहार 11 अगस्त को तो कुछ 12 अगस्त को मनाएंगे। हालांकि अधिकांश ज्योतिषी 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन पर्व मनाने को लेकर एकमत हैं। इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं भी हैं। राखी पुरातन समय के रक्षा सूत्र का ही प्रतीक है। इस दिन ब्राह्मण श्रावणी उपाकर्म भी करते हैं। ये एक धार्मिक कर्म है जो हर ब्राह्मण के लिए अनिवार्य होता है। आगे जानिए कैसे मनाएं रक्षाबंधन का पर्व, शुभ मुहूर्त, महत्व व कथा… 

कब से कब तक रहेगी पूर्णिमा और भद्रा? (Raksha bandhan par Bhadra ka Sanyog)
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, 11 अगस्त को श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि सुबह 11.08 से शुरू होगी, जो 12 अगस्त की सुबह 07.16 तक रहेगी। चूंकि 12 अगस्त को सूर्योदय के बाद तीन मुहूर्त से भी कम समय के लिए पूर्णिमा रहेगी, इसलिए 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाना शुभ रहेगा। 11 अगस्त को भद्रा तिथि सुबह 10:38 से रात  08:30 तक रहेगी। इस दौरान रक्षा बंधन पर्व मनाना शुभ नहीं रहेगा।

ये हैं रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त (Rakshabandhan 2022 Ke Shubh Muhurat)
11 अगस्त, गुरुवार की रात भद्रा काल समाप्त होने के बाद चर के चौघड़िएं (रात 08.30 से 09.55) में रक्षा सूत्र बांधना शुभ रहेगा। कुछ विद्वानों का मत ये भी है कि अभिजीत, विजय व अमृत काल में रक्षा सूत्र बांधा जा सकता है। इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.06 से 12.57 तक रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 02.14 से 03.07 तक और अमृत काल शाम 06.55 से रात 08.20 मिनट तक रहेगा। जो लोग 12 अगस्त को ये पर्व मनाना चाहते हैं उनके लिए सुबह 07.05 से पहले शुभ मुहूर्त रहेगा।  

ऐसे मनाएं रक्षाबंधन का पर्व (Rakshabandhan 2022 Puja Vidhi)
- श्रावण मास की पूर्णिमा की सुबह स्नान आदि करने के बाद घर को धोकर पवित्र करें। एक साफ स्थान पर कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं। इसके ऊपर तांबे कलश पानी भरकर रखें। कलश के मुख पर आम के पत्ते रखकर उस पर नारियल रख दें। 
- अब कलश के दोनों ओर आसन बिछा दें। (एक आसन भाई के बैठने के लिए और दूसरा बहन के लिए)। अब भाई-बहन आमने-सामने इन आसनों पर बैठ जाएं। पहले कलश की पूजा करें। फिर बहन भाई के दाहिने हाथ में नारियल तथा सिर पर रूमाल रखे।
- अब भाई के मस्तक पर तिलक व चावल लगाएं और उसके दाहिनी कलाई पर राखी बांधते समय ये मंत्र बोलें-
ॐ एन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबली
तेन त्वा मनुबधनानि रक्षे माचल माचल।।

- अंत में भाई को मिठाई खिलाकर आरती उतारें। भाई अपनी बहन को उपहार में कपड़े आदि उसकी पसंद की चीजें दें और पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें। इस प्रकार रक्षाबंधन का पर्व मनाने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है।

रक्षाबंधन की कथा (Rakshabandhan 2022 Ki Katha)
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, दैत्यों का राजा बलि महापराक्रमी था। वह स्वर्ग पर अधिकार करना चाहता था। इसके लिए दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने उनसे एक विशेष यज्ञ करने का संकल्प करवाया। ये बात जब देवताओं को पता चली तो वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे 3 पग भूमि दान में मांगी। - राजा बलि जान चुके थे कि ये ब्राह्मण कोई और नहीं बल्कि साक्षात नारायण का अवतार है, फिर भी उन्होंने तीन पग भूमि दान करने का वचन दे दिया। तब वामन रूपी भगवान विष्णु ने अपने दो पग में धरती और आकाश को नाप दिया। तीसरा पग रखने की बारी आई तो राजा बलि ने कहा कि “अब अपना तीसरा पग मेरे ऊपर रख दीजिए।”
- ऐसा करने पर राजा बलि पाताल लोक जा पहुंचें। भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने उनसे कहा कि “आप भी मेरे साथ पाताल में निवास कीजिए।” वचनबद्ध होने के कारण भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल में चले गए।
- ये बात जब देवी लक्ष्मी को पता चली तो वे अत्यंत चिंतित हो गई और वे भी पाताल जा पहुंची। देवी लक्ष्मी को राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया। जब राजा बलि ने देवी को उपहार देना चाहा तो उन्होंने अपने पति यानी भगवान विष्णु को ही मांग लिया। इस तरह देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को लेकर पुन: बैकुंठ लोक लौट गई। तभी से  रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है।


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