Vaikuntha Chaturdashi 2022: वैकुंठ चतुर्दशी 6 नवंबर को, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, कथा और महत्व

Vaikuntha Chaturdashi 2022: हिंदू धर्म में भगवान शिव और विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कई व्रत-उपवास किए जाते हैं, लेकिन एक पर्व ऐसा ही भी है, जिसमें इन दोनों देवताओं की पूजा की जाती है। इसे वैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं। इस बार ये तिथि 6 नवंबर, रविवार को है। 
 

Manish Meharele | / Updated: Nov 06 2022, 05:45 AM IST

उज्जैन. इस बार वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2022) का पर्व 6 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा। हालांकि कुछ पंचांगों में इसकी तारीख 7 नवंबर बताई गई है, लेकिन ये पर्व चतुर्दशी तिथि की रात में मनाया जाता है, ये स्थिति 6 नवंबर को ही बन रही है, इसलिए इसी दिन ये पर्व मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा। इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा संयुक्त रूप से करने का विधान है। इस पर्व से और भी कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। आगे जानिए वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व व अन्य खास बातें…

जानें वैकुंठ चतुर्दशी पर बनने वाले योगों के बारे में (Vaikuntha Chaturdashi 2022 Shubh Yog)
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तिथि 06 नवंबर, रविवार की शाम 04:28 से शुरू होकर 07 नवंबर, सोमवार की शाम 04:16 तक रहेगी। चूंकि चतुर्दशी तिथि की रात्रि 6 नवंबर को रहेगी, इसलिए इसी रात को ये पर्व मनाया जाएगा। इस दिन वर्धमान, आनंद और सिद्धि नाम के 3 शुभ योग भी बन रहे हैं। 6 नवंबर की सुबह पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:48 से दोपहर 12.32 तक रहेगा। रात में पूजा का शुभ मुहूर्त 11:45 से 12:37 तक रहेगा।  

वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि (Vaikuntha Chaturdashi 2022 Puja Vidhi)
6 नवंबर, रविवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। सुबह शुभ मुहूर्त में शिवजी और भगवान विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा करें। रात में शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु को कमल के फूल और शिवजी को बिल्व पत्र चढ़ाएं। ये मंत्र बोलें-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
रात में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करने के बाद अगली सुबह (7 नवंबर, सोमवार) ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। इस प्रकार पूजा करने से आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है। 

भगवान विष्णु से मिलने जाते हैं शिवजी? (What is Hari-Har Milan tradition?)
वैकुंठ चतुर्दशी से हरि-हर मिलन की परंपरा भी जुड़ी हुई है। मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु 4 महीने के लिए योगनिंद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान सृष्टि का संचालन शिवजी संभालते हैं। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिंद्रा से जागते हैं। इसके बाद शिवजी वैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास जाते हैं और सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी सौंपते हैं। चूंकि विष्णुजी का निवास वैकुंठ लोक में होता है इसलिए इस दिन को वैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु सृष्टि का संचालन करते हैं। भगवान शिव के विष्णुजी से मिलने की परंपरा को ही हरि-हर मिलन किया जाता है। देश के कई मंदिरों में इस दिन इस परंपरा का पालन किया जाता है।

वैकुंठ चतुर्दशी की कथा (Story of Vaikuntha Chaturdashi)
- पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु शिवजी का पूजन करने काशी आए। यहां उन्होंने एक हजार कमल के फूलों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। जब विष्णुजी पूजा करने लगे तो उनकी परीक्षा लेने के लिए शिवजी ने एक कमल का फूल कम कर दिया।
- जब भगवान विष्णु ने 1 हजार में से 1 फूल कम देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। बाद में उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान है, इसलिए मेरा एक नाम कमल नयन है। यह विचार आने पर वे अपनी एक आंख निकालकर शिवजी को चढ़ाने लगे।
- तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए और बोले “ इस पूरे संसार में आपके समान मेरा और कोई दूसरा भक्त नहीं है। आपकी पूजा पूर्ण हुई। आज कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तिथि है। आज से ये तिथि बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी। इस दिन भक्त आपकी और मेरी पूजा संयुक्त रूप से करेंगे।”
- भगवान विष्णु से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें सुदर्शन चक्र भी दिया। मान्यता के अनुसार, जो भक्त इस दिन भगवान शिव और विष्णुजी की पूजा संयुक्त रूप से करता है, उसे अपने जीवन में कई सुख मिलते हैं और वह मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम में निवास करता है।
 


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