बचपन में अनाथ-मजूदर बनना चाहा..पढ़ें अंडर-19 टीम के कप्तान मोहम्मद अमान की कहानी

18 वर्षीय क्रिकेटर मोहम्मद अमान को हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने वाली भारतीय अंडर-19 टीम का कप्तान नियुक्त किया गया है। दो साल पहले अनाथ हुए अमान ने क्रिकेट खेलने और अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए गरीबी और कठिनाइयों का सामना किया।

Asianetnews Hindi Stories | Published : Sep 1, 2024 12:51 PM IST

लखनऊ: बीते दिन ऑस्ट्रेलिया अंडर 19 क्रिकेट टीम के खिलाफ एकदिवसीय और चार दिवसीय मैचों के लिए भारतीय युवा टीम की घोषणा की गई. पूर्व भारतीय कप्तान और कोच राहुल द्रविड़ के बेटे समित द्रविड़ ने भी टीम में जगह बनाई. एकदिवसीय टीम की कप्तानी मोहम्मद अमान को सौंपी गई है. इस 18 वर्षीय खिलाड़ी की कहानी ही अब सुर्खियों में है. 16 साल की उम्र में ही अनाथ हुए अमान पर अपने तीन छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी है. अमान के पास दो ही रास्ते थे. एक तो क्रिकेट खेलना जारी रखें, या अपने सपने को छोड़कर दिहाड़ी मजदूर बन जाएं.

अमान की मां सायबा का 2020 में कोविड के दौरान निधन हो गया था. उनके पिता मेहताब एक ट्रक ड्राइवर थे जिनकी दो साल बाद लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले अमान ने उन काले दिनों को कैसे पार किया यह अविश्वसनीय है. उन दिनों को याद करते हुए अमान कहते हैं... ''जब मैंने अपने पिता को खोया, तो मुझे लगा जैसे मैं रातों-रात बड़ा हो गया हूं. मैं घर का मुखिया बन गया. मुझे अपनी छोटी बहन और दो भाइयों की देखभाल करनी थी. मैंने खुद से कहा कि मुझे क्रिकेट छोड़ देना चाहिए. मैंने सहारनपुर में नौकरी की तलाश भी की, लेकिन कुछ काम नहीं आया. हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी थे जो मेरी प्रतिभा का समर्थन करने को तैयार थे.''

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अमान ने आगे कहा, ''भूख से बड़ा कोई दर्द नहीं होता. मैं आज भी अपना खाना बर्बाद नहीं करता क्योंकि मुझे पता है कि भूखा रहना कैसा लगता है. हमारे उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ के अंडर कानपुर में ट्रायल चल रहे थे. मैं ट्रेन के जनरल डिब्बे में सफर करता था. टॉयलेट के पास बैठ जाता था. आज जब मैं हवाई जहाज में सफर करता हूं और किसी अच्छे होटल में रुकता हूं तो मैं इसके लिए भगवान का शुक्रगुजार हूं. लेकिन, वह अपने सपने को पूरा कर पाने के लिए आभारी हैं. मैं उन पलों को महत्व देता हूं. मैं बयां नहीं कर सकता कि वह समय कितना कठिन था.'' अमान ने अपने कोच राजीव गोयल को भी धन्यवाद देना नहीं भूले.

गोयल अमान के बारे में बताते हैं.. ''उसके घर में पैसे नहीं थे, अमान ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसे किसी कपड़े की दुकान पर नौकरी दिला सकता हूं. मैंने उसे अपनी अकादमी में आने और बच्चों को कोचिंग देने के लिए कहा. मैंने उसकी हर संभव मदद की. इसलिए वह रोजाना आठ घंटे मैदान पर रहता था. उसकी यही मेहनत रंग लाई.''

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