पैरालंपिक मेडलिस्ट रूबीना के पास ट्रेनिंग तक के नहीं थे पैसे, मेहनत से पाई मंजिल

जबलपुर की पैरालंपिक एथलीट रूबीना फ्रांसिस ने आर्थिक तंगी के बावजूद पैरालंपिक 2024 में 10 मीटर एयर पिस्टल प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। रूबीना को स्कूल में ही शूटिंग के प्रति रुचि जागी और इस खेल में आगे बढ़ने का फैसला किया।

Yatish Srivastava | Published : Sep 1, 2024 4:08 AM IST / Updated: Sep 01 2024, 09:47 AM IST

खेल समाचार। कहते हैं अगर दिल में कुछ कर गुरजने की चाहत और पक्का इरादा हो तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती। जबलपुर की पैरालंपिक एथलीट रूबीना फ्रांसिस ने ये साबित कर दिया है। घर में आर्थिक संकट के बाद भी उसने हार नहीं मानी और पैरालंपिक 2024 में इतिहास रच डाला। रूबीना ने 10 मीटर एयर पिस्टल प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया है। रूबीना इससे पहले भी 6 अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में पार्टिसिपेट कर चुकी हैं। हालांकि इतना सब कुछ पाना आसान नहीं था। काफी संघर्ष के बाद आज वह यहां तक पहुंची हैं। जानें पैरालंपिक शूटर रूबीन फ्रांसिस की कहानी…

स्कूल में हुई शूटिंग की शुरुआत
रूबीना की पढ़ाई-लिखाई जबलपुर में ही सेंट अलायसियस स्कूल से हुई है। इसी स्कूल में रूबीना कलम चलाने के साथ पिस्टल चलाना भी सीखा है। स्कूल में गन फॉर ग्लोरी एकेडमी की ओर से टैलेंट सर्च प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। इसमें रूबीना ने निशानेबाजी में हिस्सा लेकर पहला स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद एकेडमी में वह सेलेक्ट हो गई थीं।

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ट्रेनिंग लेने को नहीं थे पैसे
रूबीना की निशानेबाजी में रुचि तो थी लेकिन एकेडमी की फीस और अन्य खर्च के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में एकेडमी से फोन आने के बाद उन्होंने घर में आर्थिक तंगी के बारे में बताया। इस पर उन्हें एकेडमी ने हर तरह से सपोर्ट करने का भरोसा दिलाया और फिर शूटिंग की ट्रेनिंग शुरू हो गई। 

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घर की माली हालत भी ठीक नही थी
पैरालंपिक शूटर रूबीना आर्थिक रूप से कमजरो परिवार से हैं। पापा मोटर मैकेनिक का काम करते हैं इसलिए पैसों की तंगी भी बनी रहती है। रूबीना के स्पोर्ट्स, पढ़ाई के साथ भाई एलेक्जेंडर को लेकर भी जिम्मेदारियां थीं। काम का नुकसान करके भी वह रूबीना को रोज ट्रेनिंग सेंटर पहुंचाने जाते थे।

गगन नारंग को मानती हैं प्रेरणास्रोत
रूबीना फ्रांसिस कहती हैं कि निशानेबाजी का शौक उन्हें बचपन ही था। गगन नारंग की निशानेबाजी देखकर उनके अंदर भी इस खेल को लेकर रुचि बढ़ी। स्कूल से शुरू हुआ सफर आज यहां तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि वे गगन नारंग से मिलना भी चाहती हैं और शायद अब ये सपना पूरा हो जाए। 

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