बचपन में सिर से उठा माता-पिता का साया, रेल यात्रा की चाहत ने बनाया पैरालिंपियन

जन्म से ही दृष्टिहीन रक्षिता राजू ने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया। ट्रेन में बैठकर दुनिया देखने की चाहत ने उन्हें एथलेटिक्स की दुनिया में कदम रखने के लिए प्रेरित किया और आज वह पैरालिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार हैं।

Vivek Kumar | Published : Aug 18, 2024 5:26 AM IST

नासिर सजीप, कन्नडप्रभा। बेंगलुरु: जन्म से ही दृष्टिहीन। दो वर्ष की उम्र में मां और दस साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। नाम है रक्षिता राजू। एक दृष्टिहीन बच्ची जब अपने माता-पिता का सहारा खो देती है तो उसकी ज़िंदगी कैसी होगी, इसकी कल्पना भी कठिन है। लेकिन रक्षिता ने हार नहीं मानी। उन्होंने ठान लिया कि ज़िंदगी में कुछ कर दिखाना है। और आज वही रक्षिता पैरालिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने पेरिस जा रही हैं. 

स्कूल के दिनों में रेल में बैठकर यात्रा करने की चाहत ने उन्हें एथलेटिक्स की दुनिया में कदम रखने के लिए प्रेरित किया और आज वही रक्षिता देश-विदेश में भारत और कर्नाटक का झंडा लहरा रही हैं. 

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चिक्कमगलुरु जिले के मूडिगेरे तालुक के बालूर गुडनहल्ली की रहने वाली रक्षिता 28 अगस्त से शुरू हो रहे पैरालिंपिक में महिलाओं की 1500 मीटर दौड़ में हिस्सा लेंगी। वह इस स्पर्धा में भाग लेने वाली भारत की पहली महिला एथलीट हैं। 22 वर्षीय रक्षिता इससे पहले पैरा एशियन गेम्स में दो बार स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। अब उनकी नज़रें पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने पर टिकी हैं।

कठिनाइयों भरा जीवन: बचपन में ही माता-पिता को खोने के बाद रक्षिता का पालन-पोषण उनकी बधिर दादी ने किया। लोग उन्हें ताने मारते थे, लेकिन उनकी दादी को कुछ सुनाई नहीं देता था। 12 साल की उम्र में रक्षिता को उनकी दादी ने पास के एक स्कूल में दाखिला करवा दिया। बाद में, शिक्षकों की सलाह पर उन्हें चिक्कमगलुरु के आशाकिरण अंध विद्यालय में भेज दिया गया। 2016 में दिल्ली में आयोजित आईबीएसए राष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिता में रक्षिता ने पहली बार 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण और 100 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता। 2017 में उनका चयन जूनियर एशियन गेम्स के लिए हुआ। हालाँकि, पासपोर्ट न होने के कारण वह दुबई की यात्रा नहीं कर सकीं।

रेल यात्रा ने बदल दी ज़िंदगी!

2016 में जब रक्षिता चिक्कमगलुरु के आशाकिरण अंध विद्यालय में थीं, तब उनके स्कूल के अन्य बच्चे चैंपियनशिप के लिए नई दिल्ली रेल से जा रहे थे। यह जानकर रक्षिता को भी रेल में यात्रा करने की इच्छा हुई। चिक्कमगलुरु से बाहर कभी न जाने वाली रक्षिता को बाहरी दुनिया देखने की लालसा थी। उन्होंने अपने शिक्षकों से एथलेटिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई और अनुमति मिलने पर नई दिल्ली के लिए रवाना हुईं। अपने पहले ही प्रयास में पदक जीतने के बाद रक्षिता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

गुरु राहुल ने दिखाई मंजिल की राह

रक्षिता राजू की सफलता के पीछे उनके गुरु, गाइड रनर राहुल बालकृष्ण का अहम योगदान है। एक तरह से राहुल रक्षिता की रीढ़ हैं। रक्षिता का लक्ष्य अगर है, तो उसे पूरा करवाना राहुल का काम है। 2017 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पहली बार रक्षिता की प्रतिभा को पहचानने वाले बेंगलुरु के राहुल ने रक्षिता को अपने साथ रखकर उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया। राहुल बताते हैं कि कई बार प्रतियोगिताओं में जाने के लिए पैसे नहीं होते थे, तब उन्होंने कर्ज भी लिया। पिछले कुछ सालों से रक्षिता को बेंगलुरु के साई केंद्र में प्रशिक्षण दे रहे राहुल पैरालिंपिक में भी रक्षिता का हाथ थामे दौड़ेंगे. 

प्रधानमंत्री मोदी को दिया खास तोहफा

2023 के पैरा एशियाड में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नवंबर में एक अभिनंदन समारोह का आयोजन किया था। इस दौरान रक्षिता ने प्रधानमंत्री को अपने गाइड रनर के साथ दौड़ते समय पहनने वाला टी-शर्ट भेंट करके सबका ध्यान खींचा था।

कई पदक जीत चुकी हैं रक्षिता!

2018 में एशियन पैरा गेम्स में 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने वाली रक्षिता ने 2023 के पैरा एशियाड में भी स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। इसके अलावा, 2023 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स में रजत और विश्व चैंपियनशिप में 5वां स्थान हासिल किया। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कई बार चैंपियन रह चुकी रक्षिता को अपने पहले ही पैरालिंपिक में पदक जीतने की उम्मीद है।

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