बिहार में 2020 के बाद अब तक 17 विधायकों ने बदला दल, जानें किस पार्टी ने तोड़े कितने MLA

Published : Oct 18, 2025, 05:25 PM IST
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सार

ADR रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 2020-25 के बीच 17 विधायकों ने दल बदला। भाजपा 7 विधायकों को शामिल कर सबसे बड़ी लाभार्थी बनी। राजद और जदयू ने भी 5-5 विधायक जोड़े, लेकिन राजद ने अपने 5 विधायक खोए भी।

पटनाः बिहार की सियासत में दल-बदल कोई नई बात नहीं, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद पिछले पाँच वर्षों में जिस रफ्तार से विधायकों ने पार्टी बदलनी शुरू की है, उसने पूरे राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2025 के बीच कुल 17 विधायकों ने अपने दल बदले हैं यानी औसतन हर तीन महीने में एक विधायक ने ‘नई राजनीतिक पारी’ शुरू की है।

भाजपा बनी सबसे बड़ी ‘लाभार्थी’ पार्टी

रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा (BJP) ने सबसे ज़्यादा विधायकों को अपने पाले में मिलाया है। पिछले पाँच वर्षों में तीन अलग-अलग पार्टियों से कुल सात विधायक भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें राजद के दो विधायक भरत बिंद और संगीता कुमारी और कांग्रेस के दो विधायक मुरारी प्रसाद गौतम व सिद्धार्थ सौरव शामिल हैं। बाकी तीन विधायक अन्य दलों से भी आए। बीजेपी को इस दलबदल से न सिर्फ़ विधानसभा में अपनी पकड़ मज़बूत करने का मौका मिला बल्कि विपक्षी खेमे में मनोवैज्ञानिक बढ़त भी मिली।

राजद ने जोड़े 5, लेकिन खोए भी 5 विधायक

राजद (RJD) की स्थिति कुछ दिलचस्प रही। एक तरफ उसने एआईएमआईएम (AIMIM) के चार विधायक मोहम्मद इज़हार असफी, मोहम्मद अंजार नईमी, शाहनवाज़ और सैयद रुकनुद्दीन अहमद को अपने खेमे में जोड़ा और जदयू की बीमा भारती को भी शामिल कर लिया। लेकिन दूसरी तरफ राजद को अपने पाँच विधायकों के पलायन का नुकसान भी झेलना पड़ा, जो बीजेपी और जदयू जैसे दलों में शामिल हो गए।

जदयू ने भी जोड़े 5 विधायक

नीतीश कुमार की जदयू (JDU) भी पीछे नहीं रही। रिपोर्ट के अनुसार, जदयू ने राजद के तीन विधायक चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रहलाद यादव, बसपा के मोहम्मद जमा खान, और लोजपा के राजकुमार सिंह को अपने साथ जोड़ा। दल-बदल के इस खेल में जदयू ने एक बार फिर साबित किया कि वह सत्ता की राजनीति में ‘संतुलन साधने’ में माहिर है।

कौन बना सबसे बड़ा ‘लूज़र’?

एडीआर रिपोर्ट बताती है कि राजद को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ। इसके कुल पाँच विधायक दल छोड़ चुके हैं। वहीं भाजपा और भाकपा (माले) जैसी पार्टियों के किसी विधायक ने अब तक दल नहीं बदला, जो पार्टी अनुशासन और वैचारिक स्थिरता का संकेत माना जा रहा है।

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