बिहार चुनाव 2025 में AIMIM को क्यों चाहिए महागठबंधन का साथ? क्या है ओवैसी की बेचैनी का राज?

Published : Sep 12, 2025, 06:23 PM IST
ओवैसी

सार

AIMIM महागठबंधन में शामिल होना चाहती है, खासकर बिहार में घटते जनाधार के कारण। सीमांचल में मुस्लिम वोटों पर RJD-कांग्रेस की मजबूत पकड़ ओवैसी के लिए चुनौती है

बिहार की राजनीति में एक अजीब सा ड्रामा देखने को मिल रहा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM अपनी पूरी ताकत लगाकर महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश कर रही है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों? जो पार्टी कभी अपनी अलग पहचान और "तीसरे विकल्प" की बात करती थी, वही आज किसी भी कीमत पर गठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है। इस बेचैनी के पीछे छुपी है सीमांचल की सियासत और ओवैसी की एक बड़ी रणनीति।

जब ढोल लेकर लालू के दरवाजे पहुंचे AIMIM कार्यकर्ता

गुरुवार को पटना में एक अजीबोगरीब सियासी दृश्य देखने को मिला। AIMIM के बिहार अध्यक्ष अख्तरुल ईमान अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ ढोल-नगाड़े लेकर लालू प्रसाद यादव के आवास पहुंचे। "लालू-तेजस्वी अपने कानों को खोल, तेरे दरवाजे पर बज रहा है ढोल, गठबंधन के लिए अपना दरवाजा खोल, वरना खुल जाएगा तेरे माई समीकरण का पोल!" जैसे तेज नारों से पूरा माहौल गूंज उठा। लेकिन यहाँ दिलचस्प बात यह थी कि न तो लालू यादव ने अपने घर का दरवाजा खोला और न ही महागठबंधन का। यह नाटकीय विरोध एक गहरी राजनीतिक बेचैनी को दर्शाता है, जिसके पीछे कई परतें छुपी हैं।

सीमांचल का सियासी गणित: AIMIM का असली दांव

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जैसे जिले आते हैं, जहाँ मुस्लिम आबादी काफी अधिक है। 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने इसी इलाके से 5 सीटें जीती थीं। लेकिन 2022 में पार्टी के 4 विधायक RJD में शामिल हो गए, जिससे AIMIM की स्थिति कमजोर हो गई। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, सीमांचल में AIMIM की पकड़ कमजोर हो रही है क्योंकि तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून के विरोध में मुखर भूमिका निभाई है, जिससे मुस्लिम समुदाय में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। साथ ही राहुल गांधी की 'मोहब्बत की दुकान' और CAA-NRC के मुद्दे पर सख्त रुख ने मुस्लिम वोटर्स को प्रभावित किया है।

'BJP की B-टीम' के आरोप से बचने का प्रयास

AIMIM पर लंबे समय से 'BJP की B-टीम' होने का आरोप लगता रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जहाँ भी AIMIM अकेले चुनाव लड़ती है, वहाँ सेक्युलर वोटों का बंटवारा होता है, जिससे BJP को फायदा होता है। इस आरोप से बचने के लिए ओवैसी महागठबंधन में शामिल होना चाहते हैं। यह उनकी एक चतुर राजनीतिक चाल है जिससे नैरेटिव में बदलाव होगा और उन्हें 'BJP की B-टीम' की छवि से मुक्ति मिलेगी। साथ ही अन्य राज्यों में भी सेक्युलर पार्टियों के साथ तालमेल की संभावना बढ़ेगी।

क्यों नहीं चाहते RJD-कांग्रेस AIMIM का साथ?

महागठबंधन के नेता AIMIM के साथ गठबंधन से इसलिए बच रहे हैं क्योंकि ओवैसी के साथ खड़े होने पर हिंदू मतदाताओं में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। वहीं भाजपा इसे 'कट्टरपंथी गठबंधन' के रूप में पेश कर सकती है। साथ ही RJD और कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम वोट पहले से ही उनके पक्ष में है।

केवल 6 सीटों की मांग

अख्तरुल ईमान ने स्पष्ट किया है कि AIMIM न तो मुख्यमंत्री पद चाहती है, न कोई मंत्रालय। सिर्फ 6 सीटों की मांग कर रही है। यह रणनीति इसलिए अहम है ताकि बड़ी पार्टियों को लगे कि AIMIM कोई बड़ा दावा नहीं कर रही है और गठबंधन में शामिल होने के बाद उनके पास भविष्य में विस्तार की गुंजाइश भी होगी।

दिल्ली में ओवैसी की चुनावी तैयारी

इस घटनाक्रम के बीच दिल्ली में असदुद्दीन ओवैसी ने पार्टी नेताओं के साथ महत्वपूर्ण बैठक की है। बैठक में कई रणनीति पर चर्चा हुई। जैसे की बिहार में पार्टी संरचना को दोबारा खड़ा करना है, कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय करना, पार्टी की नीतियों को जन-जन तक पहुँचाना और सीमांचल में मजबूत स्थानीय चेहरे तैयार करना।

वोट बंटवारे का खेल: किसको होगा फायदा?

राजनीतिक जानकारों के अनुसार, अगर AIMIM अकेली चुनाव लड़ती है तो सेक्युलर वोटों का बिखराव होगा और मुस्लिम वोट RJD, कांग्रेस और AIMIM के बीच बंट जाएगा। इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा, कई सीटों पर जीत का मार्जिन कम हो सकता है, खासकर सीमांचल में चुनावी समीकरण जटिल हो जाएंगे

AIMIM की महागठबंधन में शामिल होने की बेचैनी महज चुनावी गणित का मामला नहीं है। यह ओवैसी की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिसमें राष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करना, 'BJP की B-टीम' के आरोपों से मुक्ति पाना और मुस्लिम राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना शामिल है। दूसरी ओर, RJD और कांग्रेस की दुविधा भी समझ में आती है। वे AIMIM के वोटों को चाहते हैं लेकिन ओवैसी के साथ आने से होने वाले नकारात्मक प्रभाव से बचना चाहते हैं। सीमांचल की सियासत में छुपा यह खेल अभी शुरू हुआ है, और इसके परिणाम बिहार की राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

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