
बिहार की राजनीति में महिलाओं का असर अब केवल सीमित मंच तक ही नहीं रह गया है। विधानसभा चुनाव 2025 की आहट के साथ ही यह साफ हो गया है कि महिलाएं न केवल मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं, बल्कि राजनीतिक दलों की रणनीतियों और चुनावी नतीजों को भी निर्णायक रूप से प्रभावित कर रही हैं।
साल 2005 में सत्ता में आने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी भागीदारी को लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं। इनमें सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण, पंचायती राज संस्थाओं में 50 फीसदी आरक्षण, और जीविका दीदियों के लिए 10-10 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद शामिल है। इसके अलावा महिला उद्यमी योजना, बालिका पोशाक योजना, साइकिल योजना, महिलाओं के लिए बस सेवा, और राशन कार्ड, जमीन और मकान के रजिस्ट्रेशन में विशेष छूट जैसी कई पहलें महिलाओं के जीवन को आसान बनाने के लिए लागू की गई हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024 में बिहार में कुल महिला मतदाताओं की संख्या लगभग 3 करोड़ 57 लाख 71 हजार 306 थी। एक साल के भीतर यह आंकड़ा बढ़कर 3 करोड़ 72 लाख 57 हजार 477 हो गया, यानी केवल एक साल में लगभग 15 लाख नई महिला मतदाता जुड़ी हैं। इनमें से एक करोड़ से अधिक महिलाएं जीविका दीदियां हैं।
महिलाओं की यह बढ़ती सक्रियता केवल संख्या तक सीमित नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 243 में से 167 सीटों पर महिलाओं का मतदान पुरुषों की तुलना में अधिक था। उत्तरी बिहार विशेष रूप से इस मामले में सक्रिय रहा। कटिहार का प्राणपुर, मोतिहारी, ढाका, निर्मली, छातापुर, सिकटी, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, वायसी और कस्बा जैसी 11 सीटों पर महिलाओं की वोटिंग 70% से भी अधिक रही। यह स्पष्ट संकेत है कि महिलाएं राजनीतिक निर्णयों में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं।
महिला मतदाता केवल वोट देने तक सीमित नहीं रह गए हैं। राजनीतिक दलों ने भी महिला उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। 2020 में विभिन्न दलों से कई महिला उम्मीदवार विजयी हुईं। भाजपा की टिकट पर 9 महिलाओं ने जीत दर्ज की। राजद की 7 महिला उम्मीदवार विजयी रहीं। जदयू की 6 महिला उम्मीदवार विधानसभा में प्रवेश करने में सफल रही। कुल मिलाकर एनडीए की ओर से 15 महिला उम्मीदवारों ने विधानसभा में स्थान बनाया, जो इस बात का सबूत है कि महिला उम्मीदवारों की भूमिका बढ़ रही है।
महिला मतदाता केवल मतदान तक ही सीमित नहीं हैं; उनका असर चुनावी नतीजों पर भी दिखाई देता है। 2020 में एनडीए ने 90 सीटों पर जीत हासिल की, जिनमें से 55 सीटों पर भाजपा और 37 सीटों पर जदयू ने ऐसे क्षेत्रों में जीत दर्ज की, जहां महिला वोटिंग का प्रतिशत अधिक था।
जानकारों का कहना है कि महिलाएं जातिगत और सामाजिक दबाव से ऊपर उठकर अपनी पसंद के उम्मीदवार को चुन रही हैं। इन्हें ‘साइलेंट वोटर’ कहा जाता है, क्योंकि यह वोट केवल परिणामों को प्रभावित करता है लेकिन मीडिया में इसका प्रचार कम होता है।
2025 में बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भूमिका पहले से अधिक निर्णायक होने वाली है। राजनीतिक दल अब महिला मतदाताओं की संख्या और उनकी सक्रियता को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि महिला मतदाता केवल एनडीए या महागठबंधन तक ही सीमित नहीं हैं। वे प्रत्येक दल के उम्मीदवारों और उनके लोकल मुद्दों पर ध्यान दे रही हैं। इस बार बिहार में महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी से चुनावी नतीजों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।
बिहार की राजनीति में महिलाओं की बढ़ती ताकत साफ संकेत देती है कि अब किसी भी दल के लिए महिला मतदाता को नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है। सरकार की योजनाएं, महिला उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या और महिलाओं का सक्रिय मतदान यह साबित करता है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाने वाले हैं
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