
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सियासी तापमान में जमकर उबाल आया। रविवार शाम से प्रचार पूरी तरह बंद हो गया. लेकिन इससे पहले नेताओं की रैलियों में भाषा इतनी तेज़ हो चुकी है कि हर मंच से तीर-दर-तीर छोड़े गए। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही पक्ष जनता को लुभाने, डराने, चेताने और भावनाओं को जगाने में पूरी ताकत झोंक दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और केंद्रीय मंत्रियों की टीम बिहार में लगातार रैलियाँ कीं। वहीं दूसरी तरफ़ महागठबंधन की तरफ़ से तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मैदान में मोर्चा संभाला।
सीतामढ़ी, अररिया और बेतिया की रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महागठबंधन पर करारा हमला बोला। उन्होंने कहा, “बिहार को किताब, कंप्यूटर और स्टार्टअप चाहिए, कट्टा नहीं। जिन लोगों ने बिहार को पिछड़ा बनाया, वे फिर लौटकर इसे जंगलराज में धकेलना चाहते हैं। जनता होशियार रहे। अगर गलती हुई, तो ऐसा करंट लगेगा कि पछताने की जगह भी नहीं बचेगी।” मोदी ने रोजगार और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर महागठबंधन को घेरा और कहा कि एनडीए सरकार ने बिहार में सड़क, बिजली, गैस और डिजिटल कनेक्टिविटी को मजबूत किया है।
कटिहार की रैली से प्रियंका गांधी ने सीधे पीएम मोदी को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री जी हर चुनाव में डर दिखाते हैं—कभी करंट, कभी कट्टा, कभी जंगलराज। सवाल ये है कि 10 साल में रोजगार कहाँ है? नौजवान बाहर क्यों भाग रहे हैं? बिहार पूछ रहा है। जवाब दीजिए।” प्रियंका ने आरोप लगाया कि केंद्र और एनडीए सरकार लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। यहां तक कि उन्होंने तीन चुनाव आयोग अधिकारियों के नाम लेकर कहा, “वोट चोरी को सिस्टम बनाया गया है। ये लोकतंत्र का अपमान है।”
सीमांचल में अमित शाह ने कहा, “घुसपैठियों को बचाने वालों का राज आया तो बिहार का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। NDA सीमांचल को सुरक्षित रखेगा।” इसका जवाब तेजस्वी यादव ने नवादा की सभा में दिया, “घुसपैठ के नाम पर डराओ, कट्टा-कैरियर दिखाओ, ये अब नहीं चलेगा। बिहार का लड़का नौकरी चाहता है। सरकार बदलेगी तो हर युवा के मोबाइल पर नौकरी का मैसेज आएगा।”
दूसरे चरण में 24 जिलों की 87 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। सभी दलों ने आज आखिरी वक्त तक रोड शो, नुक्कड़ सभा और सोशल मीडिया कैंपेन किया। सवाल यह है कि क्या जंगलराज का नैरेटिव चलेगा? या नौकरी और बेरोजगारी का मुद्दा भारी पड़ेगा? यह फैसला अब पूरी तरह जनता के हाथ में है।
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