
Bihar Voter List Controversy: बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर संसद में लगातार दूसरा दिन भी बवाल होता रहा। विपक्ष की मांग है कि इस विवादित प्रक्रिया को तत्काल रोका जाए और सरकार इस पर संसद में जवाब दे। लेकिन सरकार ने साफ कह दिया कि यह चुनाव आयोग का मामला है और वह इस पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं है।
संसद में सरकार की ओर से कहा गया कि वोटर लिस्ट पुनरीक्षण चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसलिए सरकार इस पर जवाब नहीं दे सकती। विपक्ष को यह तर्क स्वीकार नहीं हुआ और उन्होंने संसद के मकर द्वार पर लगातार प्रदर्शन जारी रखा।
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विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार में चल रही यह विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया एक राजनीतिक साजिश है, जिसके जरिए ‘चुनिंदा वोटरों’ को लिस्ट से बाहर किया जा रहा है। यह आरोप तब और तेज हो गया जब चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी करते हुए कहा कि करीब 52 लाख नाम लिस्ट से हटा दिए गए हैं।
चुनाव आयोग के मुताबिक जिन नामों को हटाया गया है, उनमें वे लोग शामिल हैं जो या तो मृत हैं, कहीं और माइग्रेट कर चुके हैं, या जिनका नाम दो निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज था। आयोग ने यह भी दावा किया कि लोगों को इस प्रक्रिया से कोई शिकायत नहीं है और सभी को नाम जुड़वाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।
कांग्रेस नेता मनोज तिवारी ने कहा, "चुनाव से पहले इतने बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाना पहले कभी नहीं देखा गया। यह बीजेपी की लोकतंत्र की हत्या है। हम हर दरवाज़े पर जाकर इसके खिलाफ आवाज़ उठाएंगे।"
वहीं, कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि "बिहार में वोटबंदी की जा रही है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की सहमति के बिना संभव नहीं। हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री संसद में SIR और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करें।"
हाल के दिनों में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भी एक और बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनकर उभरा है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति कथित भेदभाव को लेकर विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं। इन दोनों मामलों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया की मांग की जा रही है, लेकिन फिलहाल सरकार ने केवल ऑपरेशन सिंदूर पर 16 घंटे की बहस के लिए सहमति दी है।
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