
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच, टिकट वितरण पर 'खरीद-फरोख्त' के सबसे गंभीर आरोप ने राज्य की सियासत में भूचाल ला दिया है। पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव और कांग्रेस के बागी नेता आफाक आलम के बीच टिकट के सौदेबाजी पर 5 करोड़ रुपए का सियासी बम फूटा है। यह जुबानी जंग अब व्यक्तिगत आरोपों से निकलकर गठबंधन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा कर रही है।
इस विवाद की शुरुआत पप्पू यादव के उस तीखे बयान से हुई, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के पूर्व विधायक और मंत्री आफाक आलम पर गंभीर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया। पप्पू यादव ने दावा किया कि आफाक आलम ने साबिर अली को राज्यसभा पहुँचाने के लिए 5 करोड़ रुपये की राशि ली थी, और यही उनके वर्तमान में टिकट कटने का असली कारण है। पप्पू यादव ने आफाक आलम पर कटाक्ष करते हुए उन्हें 'नमकहरामी' न करने की सलाह दी और उनके टिकट कटने का ठीकरा उनके अतीत पर फोड़ा।
पप्पू यादव के आरोपों से तिलमिलाए आफाक आलम ने तुरंत पलटवार करते हुए जुबान खोलने की धमकी दी और कहा कि अगर उनका मुंह खुला तो पप्पू यादव का चेहरा बेनकाब हो जाएगा। आफाक आलम ने जो सबसे बड़ा सियासी बम फोड़ा, वह पप्पू यादव की निष्ठा पर सवाल खड़ा करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि पप्पू यादव ने उन पर जीतन राम मांझी और नीतीश मिश्रा से मिलने का दबाव बनाया था। आफाक आलम का सीधा इशारा था कि पप्पू यादव उन्हें नीतीश सरकार को बचाने के लिए मदद करने को कह रहे थे, लेकिन उन्होंने ईमानदारी दिखाई।
आफाक आलम ने पप्पू यादव की नीयत पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या उन्होंने खुद उम्मीदवार चयन में पैसा नहीं लिया है? उन्होंने पप्पू यादव पर अल्पसंख्यकों को केवल वोट बैंक मानने और उनके हितों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया।
इस पूरे विवाद की जड़ कस्बा विधानसभा सीट है। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। आफाक आलम, कांग्रेस से टिकट कटने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं और उन्हीं मुस्लिम वोटों पर दावा ठोक रहे हैं, जिन्हें पप्पू यादव साधने की कोशिश कर रहे हैं।
कस्बा सीट से कांग्रेस के आधिकारिक प्रत्याशी मोहम्मद इरफान आलम ने भी आफाक आलम के आरोपों को बेबुनियाद बताया। उन्होंने पलटवार करते हुए पूछा कि अगर उन्होंने (इरफान ने) पैसा देकर टिकट खरीदा है, तो आफाक आलम तीन बार विधायक रहने के दौरान कितना रुपया देकर टिकट खरीदे थे।
बिहार की राजनीति में आरोपों की यह व्यक्तिगत लड़ाई अब चुनावी विमर्श की दिशा बदल रही है। एक तरफ पप्पू यादव खुद को 'सुधारक' के रूप में पेश कर रहे हैं, तो वहीं आफाक आलम का 'सरकार बचाओ' वाला बयान विपक्षी एकजुटता पर भी संदेह पैदा कर रहा है। कांग्रेस के भीतर टिकट बेचने के आरोपों से जूझ रहे इस माहौल में, सबकी नज़रें कस्बा के मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी हैं, जो तय करेंगे कि यह जुबानी जंग चुनावी नतीजों में किसके पक्ष में हवा मोड़ती है।
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