
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नज़दीक आते ही टिकट बंटवारे को लेकर राजनीतिक दलों की रणनीति साफ नज़र आने लगी है। इस बार मुकाबला सिर्फ विचारधारा और गठबंधन का ही नहीं, बल्कि "जनरेशन वॉर" का भी है। एनडीए (बीजेपी-जदयू) जहां अपने पुराने और आज़माए हुए प्रत्याशियों पर भरोसा दिखा रहा है, वहीं महागठबंधन (RJD और कांग्रेस) युवाओं को फ्रंटफुट पर लाने के मूड में है।
बीजेपी और जदयू ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों में लगातार "ट्राईड & टेस्टेड" फॉर्मूला अपनाया। आंकड़े बताते हैं कि 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में बीजेपी ने औसतन 34 और जदयू ने 26 पुराने प्रत्याशियों को दोहराया। इन दलों का मानना है कि बिहार जैसे राज्य में "पहचान और जातीय समीकरण" ही सबसे बड़ा हथियार है। गांव-गांव तक नेटवर्क बनाने वाले, कार्यकर्ताओं से जुड़ाव रखने वाले और जातीय गणित साधने वाले नेताओं पर दोबारा भरोसा करने से न सिर्फ चुनावी ज़मीन मजबूत रहती है बल्कि संगठनात्मक एकजुटता भी बनी रहती है। यही वजह है कि एनडीए इस बार भी बड़ी संख्या में पुराने चेहरों को टिकट देने की तैयारी में है।
इसके उलट, तेजस्वी यादव और कांग्रेस, दोनों ही "यूथ कार्ड" खेलने पर जोर दे रहे हैं। तेजस्वी ने साफ कहा है कि उनकी पार्टी युवा नेताओं को राजनीति की मुख्यधारा में लाएगी। RJD की रणनीति है कि 243 सीटों में पुराने चेहरों के साथ-साथ नए और ऊर्जावान प्रत्याशियों को मैदान में उतारा जाए। कांग्रेस भी 65 सीटों की मांग कर रही है और उसमें नए नेताओं को प्राथमिकता देने की बात सामने आ रही है। हालांकि कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती उसका कमजोर संगठन और गुटबाजी है, लेकिन पार्टी यह समझ रही है कि सिर्फ पुराने चेहरों पर टिके रहने से चुनाव में पकड़ मजबूत नहीं हो पाएगी।
आने वाले दिनों में देखना दिलचस्प होगा कि "अनुभव" का दांव खेलने वाला एनडीए भारी पड़ता है या फिर "जोश और नए चेहरे" का दांव खेलने वाला महागठबंधन। एक तरफ जहां एनडीए के पास जीते-जमाए नेता और स्थायी वोट बैंक है, वहीं दूसरी तरफ RJD-कांग्रेस युवाओं को मौका देकर नई ऊर्जा और ताज़ा छवि पेश करना चाहते हैं।
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