
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब अपने निर्णायक मोड़ पर है। 11 नवंबर को दूसरे चरण की वोटिंग होगी, जहां 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर जनता 1302 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेगी। इस चरण में लगभग 3 करोड़ 70 लाख मतदाता अपने अधिकार का इस्तेमाल करेंगे। लेकिन चुनावी अखाड़े में उतरे प्रत्याशियों के वित्तीय आंकड़े चौंकाने वाले हैं, जो बिहार की राजनीति में बढ़ती 'मनी पावर' को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे चरण में मैदान में उतरे 1297 उम्मीदवारों में से 562 (लगभग 43%) करोड़पति हैं। यानी, औसतन हर दो-तीन प्रत्याशियों में से एक करोड़पति है। इन उम्मीदवारों की औसत संपत्ति लगभग ₹3.44 करोड़ बैठती है।
दिलचस्प बात यह है कि करोड़पति उम्मीदवारों को टिकट देने में एनडीए के सहयोगी दलों ने मुख्य पार्टियों को भी पीछे छोड़ दिया है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने इस मामले में रिकॉर्ड बनाया है।
आंकड़ों से स्पष्ट है कि चिराग पासवान की पार्टी में करोड़पति उम्मीदवारों का प्रतिशत (100%) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी BJP (83%) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी JDU (91%) से भी अधिक है। LJP (रामविलास) के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति भी सभी प्रमुख दलों में सबसे अधिक ₹14.98 करोड़ है।
बिहार की राजनीति में 'वित्तीय ताकत' का महत्व अब सिर्फ मुख्य दलों तक सीमित नहीं है। छोटे दलों में भी अमीर उम्मीदवारों को टिकट दिए गए हैं.
सीपीआई (एमएल) के 6 में से 3 (50%) और सीपीआई के 4 में से 2 (50%) उम्मीदवार भी करोड़पति हैं, जो यह बताता है कि चुनावी खर्च के बढ़ते पैमाने के कारण अब विचारधारा के साथ-साथ 'धनबल' भी चुनावी सफलता की एक अपरिहार्य शर्त बन चुका है।
हालांकि, जनता किसे मौका देगी यह 14 नवंबर के नतीजों से तय होगा, लेकिन यह चुनावी रिपोर्ट यह सवाल जरूर खड़ा करती है कि बिहार जैसे राज्य में, जहां गरीबी और बेरोज़गारी मुख्य मुद्दे हैं, वहाँ चुनावी मैदान में अमीरों का दबदबा कितना जायज़ है।
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