इमामगंज विधानसभा सीट रिपोर्टः 38% दलित, 17% मुस्लिम और 40% OBC वाले सीट पर मांझी परिवार का दबदबा लेकिन इस बार...

Published : Sep 04, 2025, 12:04 PM IST
bihar chunav imamganj

सार

गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव रिश्तों और विकास का संग्राम साबित होने वाला है। मांझी परिवार की राजनीतिक विरासत, जातीय समीकरण और स्थानीय विकास मुद्दों के बीच इस बार मतदाता किसे चुनेंगे, यही सबसे बड़ा सवाल है। 

Bihar Chunav 2025:  गया जिले की इमामगंज विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में खास महत्व रखती है, जहां हर चुनाव में केवल सत्ता नहीं बल्कि सामाजिक रिश्तों का भी एक बड़ा खेल चलता है। 2024 के उपचुनाव में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा की दीपा मांझी ने भारी प्रतिस्पर्धा के बीच राजद के रौशन मांझी को करीब छह हजार वोटों से मात दी थी, लेकिन इस चुनाव के नतीजों को त्रिकोणीय मुकाबले ने और भी दिलचस्प बनाया था। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के डॉ. जितेंद्र पासवान ने तीसरे प्रत्याशी की भूमिका निभाई थी, जिसने दो बड़े दलों के बीच टक्कर को कांटे की लकीर पर ले आया।

परिवार की पृष्ठभूमि vs विकास की चुनौती

इमामगंज सीट पर मांझी परिवार का राजनीतिक प्रभाव अभी भी कम नहीं हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने यहां से लगातार तीन बार जीत हासिल कर अपनी ताकत दिखाई है, और उनकी बहू दीपा मांझी ने इस विरासत को कायम रखा। वहीं दूसरी ओर इमामगंज क्षेत्र में बुनियादी विकास की कमी और जमीनी समस्याएं मतदाताओं के बीच गहरे सवाल पैदा करती हैं। पेयजल संकट, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, सिंचाई की दिक्कतें और रोजगार के अभाव जैसी चुनौतियां इस चुनाव की मुख्य जंग की वजह बनी हैं।

सामाजिक समीकरण का खेल

यह विधानसभा क्षेत्र जातीय विविधताओं से भरा हुआ है, जिसमें दलित मतदाता लगभग 38 प्रतिशत हैं, मुसलमान 17 प्रतिशत से अधिक, जबकि ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग करीब 40 प्रतिशत आबादी बनाते हैं। सवर्ण वोटर्स की संख्या मात्र 7 प्रतिशत के आस-पास है। पिछले चुनाव में मांझी समाज की वोटिंग को लेकर दोनों प्रमुख दलों के बीच प्रतिस्पर्धा देखी गई। इस बार भी यह समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

2025 के चुनाव में दीपा मांझी का हार्दिक मुकाबला फिर होगा, लेकिन सवाल यह है कि राजद और जन सुराज पार्टी किस रणनीति के साथ उतरेंगे। पुराने प्रत्याशियों को मौका मिलेगा या बदले हुए समीकरणों के साथ नए चेहरे सामने आएंगे? विकास आधारित चुनावी वादे और जातीय पहचान के बीच की जंग जीत की दिशा तय करेगी।

मतदाताओं की नजर में अब क्या है खास?

मतदाता अब केवल जातीयता के आधार पर नहीं, बल्कि विकास की प्रगति और सरकार के प्रदर्शन पर भी फैसला लेने को उत्सुक हैं। यही वजह है कि इस बार इमामगंज की राजनीति में विकास और जनसंवाद का मुद्दा केंद्र में होगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि क्षेत्र में स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ सिंचाई के समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है। लोगों का कहना है कि स्कूल और अस्पताल तो बन गए हैं लेकिन स्कूल में शिक्षक पढ़ाते नहीं और अस्पताल में डॉक्टर रहते नहीं। क्षेत्र के लोग जीविकोपार्जन के लिए मुख्य रूप से खेती-किसानी पर निर्भर हैं लेकिन फिर भी यहां सिचाई कि व्यापक व्यवस्था नहीं है, इसके लिए लोगों को पूरी तरह बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

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